श्वास कार्य में सुधार हेतु
सभी योग विधियों और व्यायामों में श्वास की महत्वपूर्ण भूमिका है। परीक्षणों से स्पष्ट हुआ है कि अधिकांश व्यक्ति फेफड़ों की पूरी सामर्थ्य शक्ति का उपयोग किये बिना ही बहुत अधिक उथली सांस लेते हैं। इसके कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है। चयापचयन कार्य कम हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप शारीरिक स्वास्थ्य बहुत खराब हो जाता है।
विशिष्ट शारीरिक व्यायामों, विश्राम और श्वास विधियों के माध्यम से, श्वास प्रक्रिया अधिक सचेत और एक प्राकृतिक रूप से गहरी हो जाती है। नियमित अभ्यास से हम धीरे-धीरे घटिया श्वास लेने-छोडऩे की आदतों को दूर करना और उनके स्थान पर गहरी, तनावहीन श्वास लेने-छोडऩे की पद्धति अपनाना सीख जाते हैं। इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्ति के अतिरिक्त शरीर की रोग निरोधक प्रणाली और शक्तिवर्धन में भी स्पष्ट सुधार दिखाई देता है।
हमारी श्वास प्रक्रिया का केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही प्रभाव नहीं होता है, अपितु हमारी भावनात्मक और मानसिक व्यवस्था भी इससे प्रभावित होती है। तनाव और चिन्ता के कारण हम तेजी से और उथले श्वास लेते हैं। जब हम तनावहीन या आराम में होते हैं तब श्वास धीमी और गहरी होती है। दबावपूर्ण स्थितियों में, हम सचेत, गहन श्वसन द्वारा आन्तरिक संतुलन पुन: प्राप्त कर सकते हैं। हम सीख सकते हैं कि रोजाना के तनाव और व्यावसायिक जीवन का आत्मसंयम और शान्ति के साथ किस प्रकार समाधान कर सकते हैं। इस प्रकार हम अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर एक सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं।
"दैनिक जीवन में योग" की व्यायाम शृंखला स्वस्थ श्वसन प्राप्त करने में हर किसी की सहायता करती है और दमा या पुरानी खांसी जैसे श्वास संबधी रोगों से ग्रस्त व्यक्ति भी इन अभ्यासों की सहायता से काफी आराम प्राप्त कर सकते हैं।
दमा का मनोवैज्ञानिक अंश इस बीमारी में एक विशेष महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आराम और श्वास व्यायाम से जीवन पद्धति में परिवर्तन के साथ इस कष्ट का निश्चित निवारण प्राप्त कर सकते हैं या कम से कम श्वास प्रक्रिया में काफी सुधार अवश्य कर सकते हैं।
हृदय-रक्तवाहिका रोग
योग व्यायामों और अनुशासन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य उन जोखिमों भरे कारकों को दूर करना है जो हृदय-रक्तवाहिका (Cardiovascular) रोग का आधार बनते हैं। घटिया भोजन, तनाव और पर्याप्त व्यायाम का अभाव इस रोग में समाहित विशिष्ट कारण हैं । विशिष्ट पद्धति से निरूपित व्यायामों का नियमित अभ्यास रक्त संचार और संपूर्ण रक्त वाहिका तंत्र को तैयार और प्रोत्साहित करके हृदय कार्य को काफी सुधार देता है। विशिष्ट श्वास व्यायाम ऑक्सीजन के समावेशन को बढ़ाता है और कार्बन डाई ऑक्साइड के हानिकारक विषैले कणों तथा अन्य अशुद्धियों को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होते हैं। आहिस्ता-आहिस्ता शरीर की स्वाभाविक संतुलन-स्थिति वापस आ जाती है क्योंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति पुन: स्थापित हो जाती है। विश्राम विधि असीम शारीरिक और मानसिक आराम दोनों को ही संभव बना देती है।
हृदय रक्तवाहिनी तंत्र की कार्य-व्यवस्थाओं में खराबी एक बड़ी समस्या बन चुका है और आंकड़ों का साक्ष्य इस बात का संकेतक है कि इस रोग की प्रवृत्ति विश्वभर में बढ़ती ही जा रही है। इसी कारण "दैनिक जीवन में योग पद्धति" में इस समस्या के समाधान के लिए शारीरिक, श्वसन और विश्राम व्यायामों का इस समस्या के हल के लिए अनुकूलन कर लिया गया है।
ब्रटिसलावा विश्वविद्यालय से प्रो. जर्मिला मोटाजोवा, एम.डी. ने हृदय की अवस्थाओं के पुनर्स्थापन में योग व्यायामों के प्रयोग के वैज्ञानिक अध्ययन के संरचनात्मक कार्यों में 5 वर्ष तक कार्य किया था। "दैनिक जीवन में योग" पद्धति के विशिष्ट व्यायामों का रोगियों के एक वर्ग ने अभ्यास किया। इस वर्ग की नियमित रूप से अतिसूक्ष्म निगरानी और परीक्षण किये गये। तकनीकी आंकड़ों के परिणाम (उदाहरणार्थ नब्ज की गति, रक्तचाप और अन्य कार्यरत परिमाप) ने हृदय के स्वास्थ्य को मजबूत करने में योग व्यायामों की सफलता को पूर्ण रूप से पुष्ट किया।
वात व्याधि (गठिया रोग की शिकायतें)
ऐसा पाया गया है कि बहुत सारे व्यक्ति वात व्याधियों से हड्डियों, जोड़ों और मांसपेशियों में परिवर्तनों से ग्रस्त रहते हैं जिनका कारण जीवन पद्धति जैसे अधिक खाना, पशु प्रोटीन, वसा, (चिकनाई), शारीरिक व्यायाम का अभाव और घटिया शारीरिक मुद्रा होते हैं। इन सभी कारणों से मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द में अनुत्पादक और उत्तेजित करने वाले परिवर्तन होते हैं जिसके कारण जोड़ों में सख्ती और तेज दर्द का अनुभव होता है।
योग व्यायाम विद्यमान दर्द को दूर करने में एक सहायक चिकित्सा पद्धति के रूप में ही काम नहीं करते अपितु रीढ़ की सख्ती और जोड़ों में वात के कारण होने वाले परिवर्तनों को रोकने में भी सहायक होते हैं। शारीरिक व्यायाम छोटी हो गई मांसपेशियों को और कमजोर मांसपेशियों को खींचते और इनको तनावहीन करते हैं। इससे जोड़ों को एक समरूप स्थिरता और सहारा मिल जाता है। योग व्यायाम यथासंभव बिना दर्द के ही जोड़ों की गतिशीलता का पूर्ण उपयोग करते हैं। इससे जोड़ों की गतिशीलता में बहुत अधिक सुधार होता है और जोड़ के भाग में रक्तसंचार बढ़ जाता है। इस प्रकार एक सहज प्राकृतिक रूप में ही शरीर को धीरे-धीरे स्वस्थ लोच शक्ति प्राप्त हो जाती है।
शरीर का चयापचयन उन विशेष श्वास व्यायामों द्वारा प्रोत्साहित होता है जो स्वत: नाड़ी तंत्र को संतुलित और व्यवस्थित करते हैं, जिनसे आराम महसूस होता है और शारीरिक स्वस्थता बढ़ती है।
स्लोवाकिया में पीसटनी के विश्व प्रसिद्ध स्वास्थ्य शरणास्थल रिसोर्ट में एक महत्वपूर्ण जांच में योग व्यायाम की प्रभावकारिता सिद्ध की थी। औषध विशेषज्ञों की एक टीम, जिसमें तीन डॉक्टर, एक मनोवैज्ञानिक और एक योग शिक्षक ने ''दैनिक जीवन में योग" पद्धति के व्यायाम का प्रभाव गठियाग्रस्त (स्पोन्डीलाइटिस) मरीजों पर प्रयोग कर परीक्षण किया था।
मरीजों का एक वर्ग, जिस पर ''दैनिक जीवन में योग" पद्धति के विशिष्ट शारीरिक और श्वास व्यायामों का अभ्यास किया गया, इसकी तुलना दूसरे वर्ग के मरीज, जिन्होंने श्रेष्ठ पुनर्स्थापना व्यायामों और विधियों से उपचार प्राप्त किया था, से किया गया। इनकी तुलना करने पर इस अध्ययन में गतिशीलता और फेफड़ों के परिमापों में उल्लेखनीय सुधार के साथ-साथ दर्द में भी काफी कमी पाई गई।
"दैनिक जीवन में योग" के व्यायामों की शृंखला द्वारा जोड़ों और रीढ़ की गतिशीलता से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सफलता का प्रमुख कारण इसके पुण्यकारी प्रभाव ही हैं। इन व्यायामों के दूरगामी लाभ न केवल शारीरिक सुधार लाते हैं बल्कि विश्राम विधियों के परिणामस्वरूप मानसिक शान्ति भी प्रदान करते हैं। विश्राम व्यायामों का अभ्यास रोगियों को दबाव और नाड़ीगत तनाव का अधिक अच्छी प्रकार से सामना करने में सहायता करता है। इस प्रकार उनको व्यावसायिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बेहतर प्रबन्ध करने में समर्थ बनाता है।