चक्र वे ऊर्जा केन्द्र हैं, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष ब्रह्माण्ड की ऊर्जा मानव शरीर में प्रवाहित होती है। "दैनिक जीवन में योग” का अभ्यास इन केन्द्रों को जाग्रत कर सकता है जो सभी में और हर एक व्यक्ति में विद्यमान है।
ये ८ प्रमुख चक्र हैं और सभी हमारे अस्तित्व के खास पक्ष से संबद्ध हैं।* [1].
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मूलाधार चक्र - मूल केन्द्र
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स्वाधिष्ठान चक्र - निचले पेट का केन्द्र
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मणिपुर चक्र - नाभि केन्द्र
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अनाहत चक्र - हृदय केन्द्र
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विशुद्धि चक्र - कंठ केन्द्र
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आज्ञा चक्र - भोंहों के मध्य केन्द्र
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बिन्दु चक्र - चंद्र केन्द्र
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सहस्रार चक्र - मुकुट केन्द्र
पूरे शरीर में कई अन्य केन्द्र भी समाहित हैं और उनकी स्थिति और गुणों से उनकी ऊर्जा और स्पंदन को पहचाना जाता है।
चक्रों का हमारे अस्तित्व के कई स्तरों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है।
पहला स्तर शारीरिक है। शरीर में जिस स्थान पर चक्र स्थित है वहां ग्रन्थियां, अवयव और नाडिय़ां हैं, जिनको श्वास व्यायामों, ध्यान, आसनों और मंत्रों से सक्रिय किया जा सकता है।
दूसरा स्तर नक्षत्रीय स्तर है। चक्रों का स्पंदन और ऊर्जा प्रवाह हमारी चेतना और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। गलत भोजन, बुरी संगत और नकारात्मक विचार चक्रों की ऊर्जा को कम या बाधित कर देते हैं, जिससे चेतना अव्यवस्थित और शरीर बीमार हो सकता है।
अपनी स्वाभाविक अवस्था में, चक्रों की ऊर्जा एक घड़ी की दिशा में चलती है। थोड़े से अभ्यास से हम चक्रों की प्रभा को अपने हाथ की हथेली से अनुभव कर सकते हैं और घूमने की दिशा तय कर सकते हैं। हम चक्रों के घुमाव को शरीर के उस हिस्से पर 1 सेंटीमीटर ऊपर हाथ रखकर,जहां वह चक्र स्थित है, प्रभावित कर सकते हैं और हाथ को घड़ी की दिशा में कुछ मिनटों के लिए घुमा सकते हैं।
तीसरा महत्वपूर्ण स्तर आध्यात्मिक स्तर है जिससे नैसर्गिक ज्ञान, बुद्धि और जानकारी प्राप्त होती है। वह ऊर्जा जो सभी चक्रों को जाग्रत करती है कुंडलिनी कहलाती है। "कुंडल" का अर्थ है सांप, इसीलिए यह ऊर्जा 'सर्पशक्ति' के नाम से भी जानी जाती है। कुंडलिनी का जाग्रत होना चेतना जाग्रति की ही एक प्रक्रिया है। चेतना का फैलाव होता है, जागरूकता और स्पष्टता उच्चकोटिक होती है और जीवन ऊर्जा बढ़ जाती है। कुंडलिनी जाग्रत होने का अर्थ अज्ञान, भ्रम एवं अस्थिर विचारों से मुक्ति और बुद्धि, आत्मसंयम और आत्म अनुशासन का विकास है।
सामान्य मानव-अस्तित्व से संबद्ध पांच चक्र रीढ़ के साथ स्थित हैं। तीन दिव्य चक्र सिर में स्थित हैं। इनका स्पंदन और ऊर्जा हमें आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर ले जाती है। पशुओं की चेतना से संबद्ध चक्र पंजों से अनुत्रिक (Coccyx) तक में स्थित है, जहां रीढ़ शुरू होती है। हमारी अधोप्रकृति को न तो प्रोत्साहित करने और न ही जाग्रत करने के लिए (जिसे हम मानव के रूप में पहले ही समाप्त कर चुके हैं) हमें कभी भी इन चक्रों पर ध्यान एकाग्र नहीं करना चाहिए।
इस आध्यात्मिक पथ पर हमारा सामना हमारे आंतरिक गुणों और विशिष्टताओं से होता है, जब तक कि ये पूर्णरूप से शुद्ध और परिष्कृत नहीं होते। आज्ञा चक्र में हम आत्मज्ञान को प्राप्त होते हैं। बिन्दुचक्र में हम आत्मा की अमरता का अनुभव करते हैं और सहस्रार चक्र में परमचेतना का प्रगटीकरण और व्यक्ति का परमात्मा से मिलन, अपने आप घटित होता है। मानव रूप में, हमें भी यह अद्वितीय अवसर जीवन में मिलता है कि हम परम चेतना जाग्रत कर सकें और दिव्यात्मा का ज्ञान प्राप्त कर सकें। "दैनिक जीवन में योग" और "आत्म-मनन ध्यान” हमें यह मार्ग दिखाता है।
आठ प्रमुख चक्रों के प्रतीक चिह्न और गुण
मानव शरीर के भीतर हर चक्र का एक समानुरूप चिह्न, मंत्र और रंग और उसी के अनुसार तत्त्व, प्रफुल्ल कमल, पशु और दिव्य रूप है। ये प्रतीक छवियां हर चक्र के गुणों को दर्शाती है। ऐसे चिह्न हमें चक्र के विभिन्न गुणों के खोजने और ध्यान में आंतरिक अनुभूति में सहायता करते हैं। चक्र मंत्र के बारंबार जपने से उस चक्र की ऊर्जा जाग्रत और सुदृढ़ होती है।