बन्ध का अर्थ है ताला लगाना, बन्द करना, रोक देना। बन्ध के अभ्यास में, शरीर के विशेष क्षेत्र में ऊर्जा प्रवाह को रोक दिया जाता है। जब बंध खुल जाता है तो ऊर्जा शरीर में अधिक वेग से वर्धित दबाव के साथ प्रवाहित होती है।
बन्ध चार प्रकार के होते हैं।
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मूल बन्ध : गुदा संबंधी रोक।
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उड्डियान बन्ध : मध्य पेट को उठाना।
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जालन्धर बन्ध : ठोड्डी को बन्द करना।
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महाबन्ध : एक ही समय पर तीनों बन्धों का अभ्यास।
सामान्यत:, बन्धों के अभ्यास के समय श्वास रोका जाता है। मूल बन्ध और जालन्धर बंध पूरक के बाद व रेचक के बाद भी किये जा सकते हैं। उड्डियान बंध और महाबन्ध केवल रेचक के बाद ही किये जाते हैं।
लाभ :
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चूंकि बन्धों में क्षणिक रूप से रक्त का प्रवाह रुक जाता है, इसीलिए बन्ध के खुलने पर ताजा रक्त का बढ़ा हुआ प्रवाह होता है जो पुराने मृत कणों को बहाकर दूर ले जाता है। इस प्रकार से सभी अंग मजबूत, नये और पुनर्जीवित होते हैं और रक्त संचार में सुधार हो जाता है।
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बन्ध मस्तिष्क केन्द्रों, नाडिय़ों और चक्रों के लिए भी लाभदायक है। ऊर्जा माध्यम शुद्ध कर दिये जाते हैं, रुकावटें हटा दी जाती हैं और ऊर्जा का प्रवाह, आना-जाना सुधर जाता है। बन्ध, दबाव और मानसिक व्यग्रता को शमित कर देते हैं एवं आन्तरिक सुव्यवस्था और संतुलन में सुधार लाते हैं।
सावधानी :
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बन्धों को करने के प्रयास से पूर्व, स्तरों की श्वसन तकनीकों का अभ्यास नियमित रूप से काफी लंबी अवधि तक कर लेना चाहिए।
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इस स्तर एवं आगे आने वाले स्तरों में श्वास व्यायाम शुरू करने से पूर्व सभी संबंधित बन्धों और मुद्राओं के लिए दिये गये स्पष्टीकरण को पहले पढ़ें और उनका अध्ययन करें, क्योंकि उन सभी को श्वसन तकनीकों में भली-भांति सम्मिलित किया गया है।