प्रारंभिक स्थिति :
ध्यान मुद्रा।
ध्यान दें :
श्वास प्रक्रिया पर।
दोहराना :
10 चक्र बायें नथुने से प्रारम्भ करते हुए और 10 चक्र दायें नथुने से प्रारम्भ करते हुए।
अभ्यास :
श्वास पर एक मिनट ध्यान देते हुए प्रारम्भ करें। > पूरक और रेचक का निरीक्षण करें, फिर दोनों नथुनों में श्वास के प्रवाह पर अपना ध्यान रखें। > दायां हाथ प्राणायाम मुद्रा में रखें। > दायां नथुना अंगूठे से बन्द कर दें और बायें नथुने से गहरी श्वास लें। > फिर दायां नथुना खोल दें, इसी समय बायें नथुने को अनामिका अंगुली से बन्द करें और धीरे-धीरे व आराम से दाहिने नथुने से श्वास बाहर निकालें। > दायें नथुने से फिर पूरक करें और बायें नथुने से रेचक करें। एक चक्र : पूरक बायें से — रेचक दायें से — पूरक दायें से — रेचक बायें से। 10 चक्रों के बाद हाथ को घुटने पर ले आयें और एक मिनट तक सामान्य श्वास पर चित्त एकाग्र करें। > प्राणयाम मुद्रा में लौट आयें और श्वास व्यायाम दायें नथुने से प्रारम्भ करते हुए दोहरायें : पूरक दायें - रेचक बायें - पूरक बायें - रेचक दायें। 10 चक्रों के बाद हाथ घुटनों पर ले आयें। एक मिनट तक सामान्य श्वास पर और हृदय की धड़कन की लय-ताल पर ध्यान लगायें।
लाभ :
नाड़ी शोधन प्राणयाम रक्त और श्वासतंत्र को शुद्ध करता है। गहरा श्वास रक्त को ऑक्सीजन (प्राणवायु) से भर देता है। यह प्राणायाम श्वास प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है और स्नायुतंत्र को संतुलित रखता है। यह चिन्ताओं और सिर दर्द को दूर करने में सहायता करता है।
नोट :
श्वास प्रक्रिया का यह प्रकार अनुलोम विलोम या अदल-बदल कर नथुने से श्वास लेना भी कहलाता है।