विश्राम

व्यायामों का पूरा लाभ प्राप्त करने हेतु योग व्यायामों के पहले और योग-व्यायामों के मध्य किस प्रकार से सही विश्राम किया जाए, यह सीख लेना आवश्यक है। अत: इस बिन्दु पर कुछ विश्राम-स्थितियों व तकनीकों का परिचय दिया जा रहा है। बहुत सारी तकनीकें पूरे शरीर को आराम प्रदान करने के साथ-साथ मानसिक तनावहीनता भी देती हैं, जबकि अन्य शैलियाँ शरीर के विशेष अवयवों (भागों) के उद्देश्य हेतु ही हैं। कुछ समय में आप स्वयं समझ जाएंगे कि प्रत्येक योग-व्यायाम के बाद आप के लिये कौन-सी विश्राम अवस्था सबसे ज्यादा उपयुक्त व लाभकारी है।

विश्राम (तनाव-मुक्ति) हेतु योग-व्यायाम

प्रारंभिक स्थिति :
पीठ के बल लेट जाएं।

ध्यान दें :
पूरे शरीर पर।

श्वास :
सामान्य श्वास लें।

अवधि :
2-5 मिनट

अभ्यास :
पीठ के बल आराम से लेट जाएं। पैर आराम से बाहर की ओर फैलाएं। बाजू शरीर के पास ढीले पड़े रहेंगे, हथेलियाँ ऊपर की ओर रहेंगी। यदि जरूरी हो तो सिर और घुटनों के नीचे तकिए रख लें जिससे गर्दन और पीठ का निचला हिस्सा आराम अनुभव करे। आँखें बंद कर लें और पलकों को आराम दें। पैरों के पंजों से सिर तक पूरे शरीर का अहसास करें।

भिन्न-भिन्न-स्थिति (क)
>ध्यान श्वास के स्वाभाविक प्रवाह पर लगाएं।

  • पूरक करते हुए श्वास की गति को नाभि से गले तक मार्गदर्शन करें।

  • रेचक करते हुए, श्वास की गतिशीलता को गले से नाभि तक अनुभव कर मार्गदर्शन करें।

>शरीर और श्वास की एकता को परखें।
  • पूरक करते समय देखें कि किस प्रकार पेट ऊपर उठता है और सीना दोनों पाश्र्वों में फैलता है।

  • रेचक करते समय देखें कि पेट और सीना किस प्रकार सिकुडऩे लगते हैं।

  • प्रत्येक श्वास के साथ शरीर का गहराता हुआ विश्राम देखें।

भिन्न-भिन्न-स्थिति (ख)
>बाजुओं को सीधा रखते हुए, दाएं हाथ को फर्श से कुछ सेन्टीमीटर (ज्यादा ऊँचा नहीं) ऊपर उठाएं। >हाथ को कुछ क्षण इसी हालत में रखें। >हाथ को अपने ही भार से धीरे से फर्श पर आने दें,और फिर वर्तमान विश्राम-आराम की अवस्था को पूर्व तनाव-स्थिति से तुलनात्मक रूप से परखें।

इस व्यायाम-अभ्यास को 3-5 बार हर बाजू के साथ दोहराएँ।

यही व्यायाम टाँगों के साथ भी करें।

फिर एक गहरा, लम्बा श्वास लें और रेचक के साथ शरीर को आराम करने दें, इसमें हर रेचक क्रिया के साथ विश्राम-अवस्था गहरी, गहन होती जाएगी।

भिन्न-स्थिति (ग)
>गहरे (लम्बे) पूरक और रेचक तीन बार करें। >पूरक करते हुए दाएं हाथ की मुठ्टी बंद कर लें जिसमें अंगूठा मुठ्टी के अंदर होगा,

  • पूरे बाजू को फर्श पर दबाव बनाते हुए रखें,

  • तनाव और श्वास को कुछ क्षण रोके,

  • रेचक करते हुए मुठ्टी खोल दें और धीरे-धीरे तनाव भी छोड़ दें।

  • इस अभ्यास को तीन बार करें और फिर बाएं हाथ से भी 3 बार कर लें।

>पूरक करते हुए दाएं पैर की अँगुलियों के अग्र-भागों को ऊपर की ओर करें, अँगुलियों को जोर दें और घुटने के पिछले भाग को फर्श पर दाब कर रखें।
  • तनाव और श्वास को उसी स्थिति में कुछ क्षण रहने दें।

  • रेचक करते हुए अँगुलियों को ढीला छोड़ दें और फिर धीरे-धीरे तनाव कम करते जाएं।

  • इस व्यायाम को 3 बार करें और फिर बाएं पैर से भी ऐसा ही करें।

>पूरक करते हुए बाजुओं, गर्दन, कंधों, नितम्बों और पैरों को फर्श पर (दबाव बनाते हुए) रखें
  • मुखाकृति की सभी मांसपेशियों पर जोर दें।

  • तनाव और श्वास को उसी स्थिति में कुछ क्षण रहने दें।

  • रेचक करते हुए धीरे-धीरे तनाव कम करते जाएं।

  • यह अभ्यास 3 बार करें।

>बाद में कई बार गहन पूरक और रेचक करें, तथा अब पूर्ण शरीर को आराम देने वाली सुखद अवस्था, स्थिति को अनुभव करें।

हम कैसे अनुभव कर सकते हैं कि ईश्वर हमारे लिये क्या चाहता है? ईश्वर तो हमसे कुछ भी नहीं चाहता, किंतु हम ही उससे कुछ-न-कुछ चाहतें हैं। तुम जो भी प्राप्त करते हो वह ईश्वर से ही तो आता है। जो कुछ घटित होता है, वह ईश्वर की कृपा, महत्ता से ही होता है। जीवन में जो भी कुछ प्राप्त होता है, उसे आभार और संतुष्टि के साथ स्वीकार करें। ईश्वर प्रेम, सुख, सौंदर्य, कृपा और शांति है- आप और सभी जीवन-धारियों के लिये ईश्वर की इच्छा यही है।