प्रारंभिक स्थिति :
पीठ के बल लेटें।
ध्यान दें :
मणिपुर चक्र पर।
श्वास :
सामान्य।
दोहराना :
1-2 बार।
अभ्यास :
बाजुओं को शरीर के पास रखते हुए पीठ के बल लेट जायें। घुटनों को मोड़ें और पैरों को फर्श पर नितम्बों के पास रखें। > बाजुओं को सिर के ऊपर उठायें और फर्श पर कंधों के पास हथेलियों को रख दें। अँगुलियाँ शरीर की ओर होंगी और कोहनियाँ ऊपर की तरफ। > पूरे शरीर को ऐसे ऊँचा उठायें कि केवल हाथ और पैर ही फर्श पर हो। हाथों को पैरों के पास लाने का यत्न करें। फर्श की ओर देखें। > सामान्य श्वास के साथ इसी स्थिति में बने रहें और फिर प्रारम्भिक स्थिति में लौट आयें।
लाभ :
यह आसन रीढ़ की लोच को विकसित करता है और स्वस्थता की भावना को बढ़ाता है। शरीर के सामने के हिस्से का विस्तार सभी आन्तरिक अंगों और सम्पूर्ण ग्रन्थियों के तंत्र को शक्ति देता है और उनमें संतुलन बनाता है। यह आसन पीठ, बाजू और टाँगों की मांसपेशियों को मजबूत करता है। यह शरीर को सुडौल बनाता है और उन लोगों के लिए लाभकारी है जो बहुत ज्यादा बैठते हैं। यह मासिक-धर्म संबंधी समस्याओं में भी सहायक होता है।
सावधानी :
यह व्यायाम गर्भ धारण के 3 महीने के पश्चात्, पेट की किसी भी शल्य चिकित्सा के बाद, उच्च रक्तचाप के साथ या सिर चकराने की वृत्ति होने पर, नहीं करना चाहिए। पीठ की घोर समस्यायें होने पर या कंधे, कोहनी या कलाई के जोड़ों में दर्द होने पर भी इस आसन को नहीं करना चाहिए।
इस व्यायाम के बाद आनंदासनमें आराम करें।
आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
पीठ को पुष्ट करने के लिए आसन और व्यायाम
माहवारी समस्याओं के लिए आसन और व्यायाम