"दैनिक जीवन में योग" एक परिपूर्ण आठ स्तरीय विधि है, जिसका अनुसरण प्रत्येक स्तर के बाद स्तर की विधि के अनुसार ही किया जाना चाहिये। अत: यह सिफारिश की जाती है कि किसी भी योग व्यायाम को न छोड़ें जब तक कि कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी कारण न हो। ये व्यायाम इस प्रकार बनाए व निर्धारित किए गए हैं कि इनसे शरीर, मन-मस्तिष्क और आत्मा के लिए अधिकतम ऐच्छिक लाभ मिल सके। यदि किसी व्यायाम से दर्द या दबाव पड़ता है, तो वह न करें। यदि कोई अनिश्चितता, कोई समस्या या बीमारी हो, तो पहले ही किसी योग शिक्षक, चिकित्सक या डॉक्टर से परामर्श कर ले।
योग-व्यायामों के पहले स्तर में "सर्वहित आसन" अर्थात् वे आसन, व्यायाम हैं जो सभी के लिए लाभकरी हैं। [1] ये प्रारंभिक व्यायाम, जिन्हें सच्चे योग आसनों से पूर्व अभ्यास में लाया जाता है, ''दैनिक जीवन में योग" पद्धति में सहज प्रवेश करा देते हैं। वे प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयुक्त हैं और शरीर को तनाव-रहित व निरोगी बनाते हैं। ''सर्वहित आसनों" के छ: खंडों में से प्रत्येक खंड का कम से कम दो सप्ताह अभ्यास किया जाना चाहिए।
स्तर 2-3 के व्यायामों में से प्रत्येक 6सप्ताह तक किए जाते हैं और स्तर 4-8के व्यायाम कम से कम 12 सप्ताह तक करने के साथ-साथ प्राणायाम (श्वास प्रक्रिया) और ध्यान करते हैं जो सम्बद्ध स्तर से संबंध रखते हैं। योग व्यायामों के वर्णन और चित्रण इस प्रकार किए जाते हैं कि इनको वे लोग भी कर सकें जो अपने आप ही स्वत: करना चाहते हैं। तथापि, आठवें स्तर के व्यायाम (कमल और शीर्षासन) का अभ्यास "दैनिक जीवन में योग" के प्रशिक्षक के साथ करना चाहिए।
प्रत्येक व्यायाम अगले स्तर की तैयारी का सूत्र प्रस्तुत करता है। भाग प्रथम के प्रत्येक आसन का अभ्यास वर्णनानुसार किए जाने पर ही अनेकों लाभों को अनुभव किया जा सकेगा, और अगले स्तरों को सुगमता से पूर्ण किया जा सकेगा।
"दैनिक जीवन में योग" के आठों स्तरों को आप जब प्राय: पूरा कर चुके हों तब जारी रखने के लिये आप के पास दो विकल्प हैं:
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आप स्तर-1 से पुन: आरंभ कर सकते हैं, किन्तु अब अधिक गहनता, एकाग्रता और तनावहीनता के साथ करें।
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आप उन व्यायामों को चुन सकते हैं जो आपकी वर्तमान शारीरिक और मानसिक स्थिति के लिए अधिक लाभकारी और ठीक हों। फिर भी, सभी व्यायामों की शृंखलाओं को समय-समय पर, बारम्बार करें। In योग में और जीवन में, ज्ञानार्जन करने में व्यक्ति को कोई रुकावट या बंधन नहीं होता है।
सभी आसनों के साथ संस्कृत नाम दिए जाते हैं। दुर्भाग्य-वश संस्कृत नामों में अन्तर्निहित अर्थ और ध्वन्यात्मक स्पन्दन (अंग्रजी) अनुवाद में खो जाते हैं। विद्वानों का निश्चित मत है कि संस्कृत उन कुछ गिनी-चुनी भाषाओं में से है जिसका मेघा के दोनों ओर शुभ प्रभाव पड़ता है जिसके कारण मन और शरीर में सांमजस्य बन जाता है अत: संस्कृत नामों को याद करने का प्रयत्न करें और व्यायाम-अभ्यास के समय उन पर दृष्टिपात करें।
जो भी व्यक्ति योग का अभ्यास करता है उसमें सामर्थ्य, साहस और जीवन में रुचि प्राप्त होती है। आसन और प्राणायाम (शारीरिक और श्वास-व्यायाम) स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। श्वास-अभ्यास-व्यायाम महत्त्वपूर्ण शारीरिक व्यायाम से अधिक प्रभावोत्पादक हैं और यही कारण है कि वे हर योग व्यायाम कार्यक्रम का एक एकीकृत भाग बन जाते हैं।
एक आदर्श संयोग, तनावहीनता के साथ-साथ, शारीरिक और श्वास व्यायाम अभ्यासों का है। शारीरिक और मानसिक तनाव हीनता सभी योग व्यायामों के अभ्यास की पूर्व आवश्यकताएं हैं, क्योंकि इस प्रकार ही आसनों के पूर्ण लाभ दिखाई पड़ते हैं। अपने नेत्रों को कुछ मिनटों के लिए बंद कर सकने और (मन के) भीतर व बाहर तनाव रहित होने की क्षमता बढ़ाना अति महत्वपूर्ण है। इस प्रकार योग की समय अवधि,आपके दिन की सर्व सुन्दर, सर्वाधिक शांतिपूर्ण बन जाती है, जिसके बाद आप बेहतर व सब प्रकार तरोताजा अनुभव करते हैं।
पथ्य (दैनिक आहार) की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिक विकास में भी विशिष्ट महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। योग में दैनिक आहार के प्रकार में दुग्धमय, शाकाहारी पूर्ण भोजन की सिफारिश की गई है। यह पूर्णरूपेण पर्याप्त तथा सभी आवश्यक पोषक तत्त्वों, खनिज पदार्थों, बलवर्धक और विकासोन्मुख तत्त्वों से परिपूर्ण पाया गया है। दैनिक आहार का यह प्रकार स्वास्थ्य बनाये रखता है, बीमारी (गठिया वात, कैंसर आदि) में आराम प्रदान करता है, और नई बुराइयों के विकास को रोकता है।
"दैनिक जीवन में योग" का अभ्यास करने के लिये रूपरेखा
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सबसे अच्छा है कि योगाभ्यासों के लिये आप प्रतिदिन २०-३० मिनिट का समय निर्धारित कर दें। सफलता के लिये नियमित और सावधानीपूर्वक किया गया अभ्यास समानरूप से महत्वपूर्ण है। शुरू के भोर के घंटे इसके लिये सर्वोत्तम होते हैं, किन्तु अभ्यास के लिये वास्तविक समय सबसे महत्त्वपूर्ण कसौटी नहीं है।
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कभी भी योग व्यायाम पेट भरा होने पर न करें। भोजन के पश्चात् कम से कम तीन घंटे का समय बीत जाने के बाद ही योग करें।
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सुविधाजनक, बिना कसे हुए निरबन्ध वस्त्र पहनें। पेटियां, आभूषणों और जूतों को उतार दें।
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शान्त स्थान पर अभ्यास करें। लेटने के लिये एक चटाई या कम्बल-दरी का इस्तेमाल करें।
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सचेत रहते हुए योगाभ्यास करते समय विचारों को त्याग दें। अभ्यास शुरू करने के समय प्रारम्भ में कुछ क्षणों के लिये आनन्द आसन (तनाव रहित अवस्था में) में लेट जायें और अपने शरीर और श्वास को निश्चेष्ट कर दें। [2] अपनी पूरक और रेचक क्रियाओं को देखें और स्वयं को सभी विचारों से अलग कर लेने का यत्न करें।
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प्रत्येक आसन को पूरे ध्यान और एकाग्रचित्तता के साथ करें। अभ्यास के समय नेत्रों को खोलकर रखें। केवल तब बंद रखें जब लिखा हो कि आँखें बन्द रखो। सचेत रहते हुए भिन्न-भिन्न अभ्यासों के प्रभाव से सावधान रहें और सदैव अभ्यासों के मध्य कुछ श्वासों या क्षणों के लिये पूरे शरीर को ढीला एवं तनाव रहित छोड़ दें।
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"दैनिक जीवन में योग" का सफलतापूर्वक अभ्यास करने और इस प्रणाली का भरपूर लाभ उठाने के लिये दिये गये अभ्यासों का तारतम्य बनाये रखें। मूल रूप में दी गई शिक्षाओं, अनुदेशों के अनुसार ही सदैव योग व्यायाम का अभ्यास करें। उनको न तो अन्य तकनीकों, शैलियों के साथ मिश्रित किया जाये, और न ही उनमें कोई परिवर्तन किया जाये।
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यदि शारीरिक सीमाओं (यथा अकडऩ) या अन्य समस्याओं के आधार पर आपको श्वास व्यायामों को करना संभव नहीं है तो आप इन व्यायामों को छोड़ दें।
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यदि किसी विशेष कारणवश जैसे यात्रा, स्थानाभाव, थकान, बीमारी या अस्पताल में ठहरने के कारण आप अपना सामान्य अभ्यास जारी रखने में असमर्थ हैं तो मानसिक रूप से बैठे-बैठे या आराम की स्थिति में लेटे-लेटे इसका अभ्यास कर सकते हैं।
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यदि किसी योग व्यायाम का सही कार्यान्वयन आपके लिये संभव नहीं हो, तो इसे आप तुरन्त नहीं छोड़ें। कुछ क्षण के लिये उसी स्थिति में रहें जितना आप रह सकते हैं, और फिर कोशिश करें। हर कार्य में कुछ समय लगता है।
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"दैनिक जीवन में योग" हमको अपने स्वभाव पर भी दृष्टिपात करने का अवसर देते हैं और यदि आवश्यकता हो तो उन्हें बदलने के लिये भी पे्ररित करते हैं। सही दैनिक आहार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। संस्तुति प्राप्त दुग्धमय शाकाहारी भोजन ही संपूर्ण योगिक आहार है।* [3].
आध्यात्मिक जीवन का अर्थ केवल ध्यान लगाना और रात-दिन प्रार्थना करना ही नहीं है, अपितु सक्रिय एवं सृजनशील होना, कार्य करना, भलाई करना और सहायता करना है। ईश्वर की दृष्टि में, मददगार हाथों का मूल्य याचक या प्रार्थी के हाथों से अधिक है।