प्रारंभिक स्थिति :
वज्रासन।

ध्यान दें :
पूरे शरीर पर।

श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वित।

यह व्यायाम शरीर, मन और आत्मा को पूर्ण रूप में संतुलित और सुव्यवस्थित रखता है।

यह शारीरिक स्तर पर पूरे शरीर के अंगों, मांसपेशियों और जोड़ों को मजबूत करता, फैलाता और तनावहीन करता है। यह फेफड़ों को फैलाता है और श्वास को गहरा करता है जिससे पूरे शरीर में ऊर्जा अधिक स्वतन्त्रता से प्रवाहित हो सकती है। रक्त परिचालन बढ़ता है और थकान दूर हो जाती है। चूंकि सिर को अधिक रक्तापूर्ति होती है, इसलिए एकाग्रता और नेत्र दृष्टि में सुधार होता है। खाटू प्रणाम रीढ़ की लोच भी बढ़ाता है और अंगों व ग्रन्थियों के स्वस्थ कार्य क्षमता को प्रोत्साहित करता है। यदि कोई व्यक्ति इन व्यायामों को नियमित अनुशासन में करता है तो खाटू प्रणाम सारे नाड़ी तंत्र को विनियमित करने में एक शक्तिशाली माध्यम, उपकरण का काम करता है। व्यक्ति तीव्र भावनाओं को सन्तुलित कर सकता है और हत- प्रभता तथा अवसाद पर नियन्त्रण पा सकता है।

आध्यात्मिक स्तर पर, खाटू प्रणाम एक ब्रह्माण्ड नृत्य या मुद्रा (आध्यात्मिक अभिव्यक्ति) के समान है। इसका हमारे ऊर्जा केन्द्रों (चक्रों) पर दृढ़ प्रभाव पड़ता है और जीवन ऊर्जा (प्राण) बेहतर ढंग से पूरे शरीर में प्रवाहित होती है। तत्वों और जीव में संतुलन स्थापित कर दिया जाता है। यह चेतना का विस्तार करता है, शरीर, श्वास और नाड़ी तंत्र को सुव्यवस्थित करता है और शान्ति की भावना को बढ़ाता है। यह सर्वत्र विद्यमान परम ऊर्जा की परिकल्पना के प्रति चेतना को विस्तृत करता है।

एक दिन में 1 या 2 बार खाटू प्रणाम के 4-6 चक्र करें, विशेष रूप से जब आप थकान अनुभव कर रहें हों, तब आप ताजगी और शक्ति अनुभव करेंगे।

दोहराना :
4 से 6 बार।

अभ्यास :
वज्रासन में बैठें। शरीर सीधा तना हुआ व हाथ जांघों पर हैं। पीठ, गर्दन और सिर एक सीध में हैं। पूरे शरीर को तनाव-मुक्त करें।

  1. पूरक करते हुए दोनों बाजुओं को सिर के ऊपर उठायें। हथेलियां इकट्ठी रखें और थोड़ा-सा ऊंचा और थोड़ा-सा पीछे खींचें। हाथों की ओर देखें।

  2. रेचक करते हुए हथेलियों को सामने लायें। पीठ और बाजुओं को सीधा रखते हुए कूल्हों से आगे तब तक झुकें जब तक कि बाजू व मस्तक फर्श को छू न लें। (शशांकासन)

  3. पूरक करते हुए धड़ को फर्श के साथ-साथ आगे लायें जब तक कि कंधे हाथों के बीच में हो जायें, पंजे नीचे मुड़े हुए होंगे। ठोडी, छाती, घुटने और पैरों की अंगुलियाँ फर्श को स्पर्श करेंगी। नितम्ब थोड़े उठे हुए रहेंगे।

  4. श्वास रोकते हुए कूल्हों को फर्श पर नीचे लायें और हाथों की सहायता से धड़ को ऊपर उठायें (भुजंगासन)। कंधे नीचे व पीछे दबे हुए हैं। न केवल कमर की रीढ़ से अपितु गर्दन की रीढ़ से भी खींचें, जिससे कि पूरी रीढ़ मेहराब समान बन जाये। पैर फर्श पर समतल हैं। बाजुओं को उसी स्थिति तक सीधा करें कि कूल्हे फर्श पर छूते रहें। ऊपर देंखे।

  5. रेचक करते हुए पैर की अंगुलियों को नीचे मोड़ दें, बाजुओं और टांगों को सीधा करें और नितम्बों को ऊंचा उठायें, ऐडियों को फर्श पर लायें, इससे पूरा पैर फर्श को छूता है। धड़ और बाजू एक सीध में हैं और सिर सीधे बाजुओं के बीच लटक रहा है। शरीर का भार हाथों और पैरों के तलवों के बीच में बंट जाता है। दृष्टि नाभि की ओर हो जाती है।

  6. पूरक करते हुए दायें पैर को हाथों के बीच में आगे बढ़ायें और बायें घुटने को फर्श पर नीचे लगायें। बायें पैर की अंगुलियों को नीचे दबाया जा सकता है या फर्श पर समतल रह सकती हैं। सिर को उठायें और ऊपर देखें। हथेलियां या अंगुलियां फर्श को छूएंगी। पेट व छाती का दायां पाश्र्व दायीं जांघ पर रखा रहेगा।

  7. श्वास रोकते हुए बाजुओं को सिर के ऊपर फैलायें और हथेलियों को इकट्ठा लायें। पूरे शरीर को थोड़ा-सा ऊपर और पीछे खींचें। हाथों की ओर देखें।

  8. रेचक करते हुए स्थिति 6 में वापस आ जायें।

  9. श्वास रोकते हुए बायें पैर को दायें पैर के बराबर लायें और घुटनों को सीधा करें। धड़ को आगे की ओर पूरी तरह से तनावहीन लटकने दें। यदि संभव हो तो हथेलियों को फर्श पर टिका दें।

  10. पूरक करते हुए शरीर को उठायें जिसमें बाजू सिर के ऊपर से विस्तृत होंगे। हथेलियों को इकट्ठा करें और पूरे शरीर को थोड़ा-सा ऊपर और पीछे खींचें। हाथों की ओर देखें। पीठ समान रूप से विस्तृत हो गई है।

  • ये आसन अब उलटे क्रम में होते हैं।

  1. रेचक करते हुए फिर से आगे झुकें और धड़ को लटकने दें, जैसे स्थिति 9 में दिया गया है।

  2. पूरक करते हुए दांये पैर से पीछे जायें, दाँये घुटने को फर्श पर लायें और ऊपर देखें, जैसे स्थिति 6 में दिया गया है।

  3. श्वास रोकते हुए बाजूओं को ऊपर उठायें, जैसे स्थिति 7 में दिया गया है।

  4. रेचक करते हुए बाजुओं को नीचे लायें और हाथों को फर्श पर पैर के पास लायें, जैसे स्थिति 6 या 12 में दिया गया है।

  5. श्वास रोकते हुए बायें पैर को दायें पैर के पास पीछे ले जायें और नितम्बों को ऊंचा उठायें, जैसे स्थिति 5 में दिया गया है।

  6. पूरक करते हुए कूल्हों को फर्श पर लायें और भुजंगासन में आ जायें, जैसे स्थिति 4 में दिया गया है।

  7. रेचक करते हुए ठोड़ी और छाती को फर्श पर लायें और नितम्बों को उठायें, जैसे स्थिति 3 में दिया गया है।

  8. श्वास रोकते हुए धड़ को शशांकासन में पीछे खींचें, जैसे स्थिति 2 में दिया गया है।

  9. पूरक करते हुए शरीर को बाजुओं के साथ सिर से ऊपर उठायें और हथेलियों को इकट्ठा रखें, जैसे स्थिति 1 में दिया गया है।

  10. रेचक करते हुए बाजुओं को नीचे लायें और प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें।

  • दूसरे चक्र में स्थिति 6 में हाथों के बीच बायें पैर को आगे बढ़ायें और स्थिति 12 में फिर पीछे करें। तीसरे चक्र में, दायें पैर को फिर स्थिति 6 में आगे बढ़ायें, इत्यादि।

  • इस व्यायाम तारतम्य की मुद्राओं को अलग-अलग आसनों के रूप में भी किया जा सकता है। इस प्रकार अभ्यास करने के लिए प्रत्येक स्थिति को सामान्य श्वास के साथ कुछ समय तक बनाये रखें।

खाटू प्रणाम मंत्र

  • स्थिती 1

    ॐ असतो मा सद्गमय

    हमें अवास्तविकता से वास्तविकता के पथ पर ले जायें।

  • स्थिती 2

    ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय

    हमें अन्धेरे से प्रकाश की ओर ले जायें।

  • स्थिती 3

    ॐ मृत्योर्मामृतं गमय

    हमें मृत्यु से अमरता की ओर ले जायें।

  • स्थिती 4

    ॐ सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु

    सब स्वस्थ हों।

  • स्थिती 5

    ॐ सर्वेषां शान्तिर्भवतु

    सब शान्ति में रहें।

  • स्थिती 6

    ॐ सर्वेषां मङ्गलं भवतु

    सबकी मनोकामना पूर्ण हो।

  • स्थिती 7

    ॐ सर्वेषां पूर्णं भवतु

    सबको पूर्णता प्राप्त हो।

  • स्थिती 8

    ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु

    सर्वत्र सुख व समृद्धि हो।

  • स्थिती 9

    ॐ द्यौः शान्तिः

    आकाश में शान्ति हो।

  • स्थिती 10

    ॐ अन्तरिक्षं शान्तिः

    अन्तरिक्ष में शान्ति हो।

  • स्थिती 11

    ॐ पृथिवी शान्तिः

    पृथिवी पर शान्ति हो।

  • स्थिती 12

    ॐ आपः शान्तिः

    जलों में शान्ति हो।

  • स्थिती 13

    ॐ ओषधयः शान्तिः

    जड़ी बूटियों में शान्ति

  • स्थिती 14

    ॐ वनस्पतय: शान्तिः

    वनस्पतियों में शान्ति

  • स्थिती 15

    ॐ विश्वे देवाः शान्तिः

    सरे विश्व में शान्ति

  • स्थिती 16

    ॐ ब्रह्म शान्तिः

    ब्रह्म में शान्ति

  • स्थिती 17

    ॐ सर्वं शान्तिः

    सर्वत्र शान्ति

  • स्थिती 18

    ॐ शान्तिरेव शान्तिः

    शान्ति केवल शान्ति

  • स्थिती 19

    ॐ सा मा शान्तिरेधि

    मेरे मन और हृदय में शान्ति

  • स्थिती 20

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

लाभ :

  • स्थिति 1+19

    शरीर के ऊपरी भाग के सभी अंगों, जोड़ों और मांसपेशियों को खींचता है और पेट व छाती के सभी अंगों को आराम पहुंचाता है। फेफड़े फैल जाते हैं और श्वास छाती के सभी क्षेत्रों में फैल जाती है, विशेष रूप से फेफड़ों के पाश्र्वों में। ऊर्जा अधिक स्वतन्त्रता से पूरे शरीर में, विशेष रूप से अवयवों में बहती है। यह मुद्रा विशुद्धि चक्र को प्रभावित करती है।

  • स्थिति 2+18

    सिर में बढ़ी हुई रक्तापूर्ति एकाग्रता को बढ़ाती है। इस आसन से शान्ति-जनक प्रभाव होता है और यह थकान, हताशा और अवसाद को दूर करता है। यह गर्दन और कंधों को तनावहीन करता है, श्वास को पीठ में गहराई तक पहुंचाता है और पीठ के तनाव को दूर करता है। जंघा का दबाव और पेट में श्वास की गतिशीलता आंतों की मालिश करती है। यह मुद्रा मूलाधार चक्र को प्रभावित करती है। (विशेष रूप से जब इसका अश्विनी मुद्रा के साथ अभ्यास किया जाये।)

  • स्थिति 3+17

    पूरी रीढ़ को खींचता है और जकड़ी पीठ को ठीक करता है। यह मुद्रा गुर्दे की श्रोणी क्षेत्र को आराम पहुंचाती है और निचले पेट के अंगों के लिए लाभदायक है। गहरी, मध्य पेट की श्वास बढ़ जाती है जो पूरे शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को संवद्र्धित करती है।

  • स्थिति 4+16

    यह पूरी रीढ़ और शरीर के सामने के हिस्से को खींचता है। ऊर्जा के प्रवाह को प्रोत्साहित करता है और श्वास के प्रवाह को फेफड़ों के पाश्र्वों में बढ़ाता है। गुर्दे की श्रोणी, पेट और छाती के सभी अंगों को रक्त परिचालित करता है। सभी ग्रन्थियों के कार्यों को बढ़ाता है। यह स्थिति तीव्र भावनाओं को शान्त करती है। पीठ, बाजू एवं कन्धों की मांसपेशियों को मजबूत करती है। रीढ़ को विस्तृत करती है और कूल्हों के लचीलेपन को बढ़ाती है। इस प्रकार, यह गोलाकार पीठ को रोकने में उत्तम है। इस कारण यह आसन बैठे-बैठे कार्य करने वालों के लिए अनुशंसित है। इस आसन का स्वाधिष्ठान चक्र पर सन्तुलनकारी प्रभाव होता है।

  • स्थिति 5+15

    पूरे शरीर को मजबूत करता है। रक्त संचालन प्रोत्साहित करता है और विशेष रूप से सिर में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है। इस प्रकार यह आसन थकान रोकता है और एकाग्रता व नेत्र दृष्टि के लिए सहायक है। यह पिंडलियों की मांसपेशियों को खींचता है और पैर दर्द और रगों को पुन: ठीक करने में सहायक होता है। यह मुद्रा पूरे शरीर में ऊर्जा प्रवाह को संतुलित करती है और सहस्त्रार चक्र पर सक्रिय प्रभाव रखता है।

  • स्थिति 6+14

    यह पीठ का विस्तार करता है और कूल्हों व गुर्दों के श्रोणी क्षेत्रों की सतह तथा मांसपेशियों को खींचता है। यह अच्छी मुद्रा बनाता है। यह आसन गहरी श्वास प्रणाली और स्वस्थ पाचन-क्रिया को विकसित करता है। यह मुद्रा अनाहत चक्र को प्रभावित करती है।

  • स्थिति 7+13

    यह शरीर के पूरे ऊपरी भाग को विशेष रूप से छाती के पाश्र्वों के साथ वाले भागों को खींचता है। छाती खुल जाती है और फैल जाती है जिससे श्वास फेफड़ों के सभी क्षेत्रों के भीतर समान रूप से जाने लगती है। संतुलन और टांगों की स्थिरता बढ़ाती है। पीठ का विस्तार करती है और कूल्हों को खींचती है जिससे अच्छी मुद्रा और एक तनावहीन ध्यान मुद्रा प्राप्त होती है। यह आसन विशुद्घि चक्र को प्रभावित करता है।

  • स्थिति 8+12 (जैसे 6+14)

  • स्थिति 9+11

    शरीर का ऊपरी भाग इस स्थिति में विश्राम कर सकता है। रीढ़, कंधों और बाजुओं के सभी जोड़ों में खिंचाव दूर हो जाता है और उनमें बढ़ी हुई रक्तापूर्ति होने लगती है। यह आसन सभी आन्तरिक अंगों और मांसपेशियों के कार्य तथा सिर में इन्द्रियों के अंगों (आंख, कान आदि) को प्रोत्साहित करता है। यह पीठ और टांगों की सभी मांसपेशियों को खींचता है। यह आसन मणिपुर चक्र को सक्रिय करता है।

  • स्थिति 10

    पूरे शरीर को अनुप्राणित करता है। ऊर्जा प्रवाह को संतुलित करता है और सभी ग्रन्थियों के कार्य को प्रोत्साहित करता है। श्वास को गहरा करता है, पाचन को प्रोत्साहित करता है और गले के रोगों से छुटकारे में सहायक है। इस मुद्रा का एक संतुलित प्रभाव विशुद्घि चक्र पर पड़ता है।

सावधानी :
यदि अति उच्च रक्तचाप या चक्कर आते हों तो आसनों के इस तारतम्य से बचें।


आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
रीढ़ की लोच को बढ़ाने के लिए आसन और व्यायाम
रक्त संचार बढ़ाने हेतु आसन और व्यायाम
निम्न-रक्तचाप के लिए आसन और व्यायाम
पूरे शरीर को सक्रिय करने के लिए आसन और व्यायाम
स्नायु तंत्र को शांत एवं संतुलित करने के लिए आसन और व्यायाम
एकाग्रचित्तता को बढ़ाना हेतु आसन और व्यायाम
अवसाद के लिए आसन और व्यायाम