कर्मयोग

कर्म' शब्द का अर्थ है "क्रिया, काम करना"। कोई भी मानसिक या शारीरिक क्रिया कर्म कहलाता है। इस कार्य का परिणाम भी कर्म ही कहलाता है। इस प्रकार इस शब्द का संदर्भ कारण और प्रभाव के सांसारिक नियम और सिद्धांत से भी है।

जो कुछ भी हम करते, कहते या सोचते हैं, उसका एक प्रभाव होता है, जो उचित समय पर हमको पूर्ण मात्रा में प्रतिफल देता है। यह परिणाम के इस सिद्धान्त के अनुसार ही होता है। जिसे हम 'भाग्य' कहते हैं, वह हमारे पूर्व कालिक अच्छे कर्मों का फल है, और जो हमें दुर्भाग्य के रूप में दिखाई देता है वह हमारे पूर्व काल के बुरे कार्यों का फल है।

अत: हमारे भविष्य की घटनाएं संयोगवश ही उत्पन्न नहीं होती, अपितु वे वास्तविक रूप में हमारे पूर्व और वर्तमान कार्यों के प्रभाव से ही घटित होती हैं। इस प्रकार हमारा प्रारब्ध (भाग्य) हमारे कर्म द्वारा ही पूर्व निर्धारित होता है। जिस प्रकार धनुष से छोड़े गये एक तीर (बाण) का लक्ष्य निश्चित होता है, जब तक इसका मार्ग न बदला जाये या अन्य घटना द्वारा सुधारा नहीं जाये। "दैनिक जीवन में योग" के अभ्यास में सार्थक धारणा, बुद्घि और निस्वार्थ सेवा से हम अपने कर्मों के फल को कम व परिवर्तित कर सकते हैं और अपने प्रारब्ध (भविष्य) को सार्थक दिशा दे सकते हैं।

हमारी वर्तमान स्थिति हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है और हमारे वर्तमान कर्म हमारा भविष्य निर्धारित करेंगे। हम एक बार इसको समझ लें तो जो भी कुछ आज हमारे साथ घटित होता है उसके लिए हम किसी को दोष नहीं दे सकते, बल्कि स्वयं अपने लिए ही अपनी जिम्मेदारी स्वीकार कर लेंगे।

कर्म दो प्रकार के हैं :

  • सकाम कर्म - स्वयं के लाभ के लिए कर्म

  • निष्काम कर्म - स्वार्थहीनता वाले कर्म

स्वार्थपूर्ण विचार और कर्म 'मेरे' और 'तेरे' के बीच द्वन्द्वता (दो अलग-अलग होने की भावना) को और अधिक गहरा करते हैं। तथापि निष्काम-स्वार्थहीन होने की भावना हमको हमारे क्षुद्र अहंकार की सीमा से बहुत अपार और सुदूर ले जाता है यह सभी की एकता की ओर अग्रसर करता है। सकाम कर्म हमें चौरासी का चक्र (मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र) से बांधता है। निष्काम कर्म हमें इससे स्वतन्त्र कर देता है।

भारत में वर्षा, वृक्ष, नदी और संत नि:स्वार्थ भाव के प्रतीक माने जाते हैं। वर्षा सभी को- मानव, प्रकृति और पशु-पक्षियों के लिए समान रूप से लाभ पहुंचाने के लिए होती है। वृक्ष छाया चाहने वालों को अपनी छाया देता है और फलों को प्राप्त करने के लिए वृक्ष को पत्थर मारने वालों को भी अपने मीठे फल दे देता है। नदी भी हर किसी के लिए है। हिरण अपनी प्यास उसी नदी से बुझाता है जिससे एक बाघ। एक संत बिना भेदभाव अपने आशीर्वाद, अपनी शुभकामनाएं सभी को देता है।

निष्काम कर्म नये कर्म से बचने का मार्ग है और यह पूर्व कर्म को भी सुधार सकता है। ज्ञान (समझ), क्षमा भाव और सहायता निष्काम कर्म हैं जो हमें कर्म के चक्रों से स्वतन्त्र कर देते हैं।