"आपका हृदय एक महासागर के समान है जिसमें बिना उफान के हजारों नदियां गिरती है। आपका मस्तिष्क स्वच्छ आकाश के समान है, जो कि अनंत और मुक्त है, और इस संसार से परे है। आपका अस्तित्व एक वृक्ष के समान है, जो कि छाया और मीठे फल सभी को देता है। वृक्ष न तो अपने फलों से चिपके रहता है, और ना ही उन्हें उन लोगों से दूर रखता है जो पत्थर फेंकते हैं। आपके हृदय के समान, वृक्ष भी सभी को फल देता है, जिसमें यह मायने नहीं रखता कि वह किसे मिलता है।"
"दैनिक जीवन में योग"
के प्रथम स्तर की समाप्ति के पश्चात् अब आप योग के शास्त्रीय आसनों को करने के लिए तैयार हैं।
जैसा पूर्व में आपने अनुभव किया होगा कि पारम्परिक व्यायाम एवं यौगिक क्रियाओं में एक बहुत बड़ा अंतर है। यौगिक क्रिया द्वारा शरीर की समस्त कार्य पद्धति में प्रभाव दिखाई देता है साथ ही साथ मानसिक स्थिति को पूर्ण नियंत्रित करने में भी सक्षम है। इस प्रकार यह प्रमाणित होता है कि योगिक क्रिया का प्रभाव न केवल शारीरिक सौष्ठव बढ़ाता है अपितु व्यक्ति के मानसिक विकास को प्रस्फुटित करता है। योग आसन मन, मस्तिष्क व शरीर का स्वाभाविक संतुलन बनाये रखते हैं। योग से आंतरिक शान्ति एवं स्वतंत्रता का अनुभव होता है।
तुरंत एवं लम्बी अवधि के लाभ के लिए योग का नियमित एवं शुद्ध प्रद्धति के अनुसार अभ्यास परम आवश्यक है। प्रारंभ में योग का नियमित अभ्यास कुछ कठिन लगता है, कुछ असहज भी लगता है परंतु जब मन व शरीर इससे उत्पन्न लाभ का अनुभव करते हैं, योग अभ्यास स्वत: ही रुचिकर लगने लगता है।
कुछ आसन ऐसे हैं जो आसानी से प्रात:काल में किये जाते हैं तथा कुछ आसन सायंकाल को सुगम हैं। कुछ आसन ऐसे हैं जो श्वास क्रिया के संतुलन के लिए विशेष हैं तथा जो प्रात:कालीन जागृति की कठिनाइयाँ झेलने वाले व्यक्तियों के लिए एक अनुपम उपहार हैं। जो व्यक्ति अनिद्रा के शिकार हैं और विश्राम के उत्सुक हैं उन्हें भी योग का नियमित उपयोग अत्यंत लाभप्रद है। रक्तचाप, पीठ के दर्द और अन्य शारीरिक व्याधियों के लिए नियमित आसनों का अभ्यास एक ऐसी आदत बन जाती है जो शीतल जल की फुहारों में स्नान जैसी सुखदायक लगने लगती है, जिसे छोडऩे का मन नहीं करता।
योग अभ्यास करने का क्रम
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आनन्दापूर्वक विश्राम की स्थिति से योग आसन प्रारंभ करें। उत्कृष्ट व्यायाम की स्थिति, जैसे शरीर को फैलाना, लुढकाना, मरोडना तथा “सर्वहित आसन” जैसे साधारण योग आसनों का उपयोग करें जिससे माँसपेशियों में ऊर्जा का प्रवाह हो, जोड नरम हो तथा रक्त संचार का समुचित प्रवाह हो सके।
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इसके पश्चात् "दैनिक जीवन में योग" में वर्णित विभित्र आसनों को स्तर अनुसार करें। प्रारंभ में केवल तीन बार करें व ज्यादा देर तक न करें। कुछ दिन बाद स्थिति व समय को भी बढायें। स्वास प्रक्रिया को सामान्य रखें। व्यायाम के बाद आनन्दासन की स्थिति में कुछ समय लगायें।
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आसनों की समाप्ति के बाद कमरे में हवा आने दें एवं प्राणायाम का अभ्यास करें। अंत में स्तर के अनुसार ध्यान में लगें।
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समाप्ति पर तीन बार ॐ और शांति मंत्र का पाठ करें। ॐ शांति: शांति: शांति:.