"जब आप दिन-रात भगवान को हृदय की गहराइयों से स्मरण करते हैं, वह आपके पास होता है और आपका जीवन उसके प्यार भरे हाथों में होता है।"
योग अब आपके लिए मात्र शारीरिक प्रशिक्षण ही नहीं अपितु चित्त एकाग्र न हो पाना, असन्तोष, अवसाद आदि आन्तरिक व्यथाओं, अशान्ति एवं बेचैनी इत्यादि पर नियंत्रण व उनके समाधान की प्रणाली बन चुकी है।
ऋषि पातंजलि ने अपने योग-सूत्रों में कहा है कि चित्त का सारांश प्रकृति की एक उत्पत्ति है। जब किसी पदार्थ, वस्तु की ओर चित्त लगाया जाता है तब उस वस्तु के आकार पर ही वह टिक जाता है। यह प्रक्रिया ''चित्त-वृत्ति'' कहलाती है, जो समझने के लिए ''मानसिक स्थिति'' कही जा सकती है। चूंकि पदार्थ जिसकी ओर मन, चित्त आकर्षित होता रहता है, असंख्य रूपों में होता है। इसीलिए चित्त-वृत्तियां भी अनेकानेक बनती जाती हैं। उन्हीं के साथ हमारा 'स्व' (पुरुष) भी संशोधित, निरूपित होता रहता है। योग-व्यायामों के माध्यम से हम ''चित्त-वृत्तियों'' का नियंत्रित स्थिरीकरण उपलब्ध कर सकते हैं (चित्त-वृत्ति निरोध:) और इसी के साथ 'स्व' को चेतना की परिवर्तनशील अवस्थाओं में भ्रामक तत्वरूपण से मुक्त कर सकते हैं।
आसनों और प्राणायामों के अतिरिक्त दैनिक अभ्यास में एक नया अध्याय - 'गहन एकाग्रता' भी सम्मिलित किया है। इसे भूल से प्राय: ध्यान कह दिया जाता है। तथापि ध्यान एकाग्रता से भी कुछ और अतिरिक्त है। व्यक्ति ध्यान का अभ्यास नहीं कर सकता, स्वत: ही इसका उद् भव हो जाता है, जैसे निद्रा हमें अकस्मात अपने वश में कर लेती है और हम यह भी अन्तर नहीं कर सकते कि वह कौन सा क्षण होता है जब हम निद्रा में चले जाते हैं अथवा सो जाते हैं।
एकाग्रता ध्यान के लिए एक प्राथमिक अभ्यास है, जहां उद्येश्य होता है-पर्यवेक्षण करना और शरीर, मन व इन्द्रियों को शान्त करना। यदि हमारी एकाग्रता की योग्यता पर्याप्त दृढ़ नहीं हो, तो हम या तो बेचैन हो जाते हैं अथवा सो जाते हैं। ये दोनों कार्य ही हमें ध्यान में जाने से रोक लेते हैं। यही कारण है कि एकाग्रता का अभ्यास करते समय हमारा उद्देश्य बेचैनी और निद्रा दोनों पर ही पार पाना होता है। निम्नलिखित स्तरों में वर्णित तकनीकों से निश्चित है कि उस एकाग्रता की योग्यता का विकास हो सकेगा जो ध्यान के मूल, वास्तविक स्तर को प्राप्त करने के लिए आधार है।
योग में आपकी सफलता के लिए कुछ परामर्श :
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एक शाकाहारी के रूप में जीवन यापन करें।
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मादक पदार्थों से दूर रहें। मादक पदार्थ शरीर और मन दोनों का स्वास्थ्य नष्ट करते हैं। इसी से योग-विकास के कार्य में बाधा आती है। यह सोचने की भूल से बचें कि आपकी इच्छा-शक्ति इतनी दृढ़ है कि आप किसी भी क्षण मादक पदार्थ सेवन के त्याग का निश्चय कर सकते हैं। ऐसा कभी नहीं होता है।
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मद्य (शराब) सेवन और किसी भी प्रकार की अति से बचें। वे आपके योग-पथ पर जाने में अवरोधक हैं जो सभी प्रयासों को ध्वस्त कर सकते हैं।