प्रारंभिक स्थिति :
वज्रासन।

ध्यान दें :
पूरे शरीर पर।

श्वास :
सामान्य श्वास लेना।

यह व्यायाम श्रृंखला भगवान श्री दीप नारायण महाप्रभुजी को समर्पित है। खाटू, राजस्थान (भारत) के पश्चिम में थार रेगिस्तान के किनारे पर स्थित वह स्थान है जहाँ यह महान श्रद्धेय संत १३५ साल तक जीवित रहे।

यह व्यायाम, जो शरीर, मन और आत्मा को बल प्रदान करता है,अनेक सालों के अनुसंधान और अनुभव का परिणाम है। इस अभ्यास के शुरू की अवस्था में शारीरिक लाभों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

खाटू प्रणामपूर्ण शरीर के स्नायुओं को सामथ्र्य देता है, फैलाता है और तनावरहित करता है। मेरूदंड का लोच बढ़ाता है और ग्रन्थियों की सक्रियता को नियमित करता है। यह प्रतिरक्षक प्रणाली को सुदृढ़ करता है जिससे रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। संपूर्ण स्नायु प्रणाली संतुलित और पुष्ट होती है। नित्य किये गये कुछ अभ्यास शिथिल अवस्था को सुधारने, पीठ का दर्द दूर करने, पाचन क्रियाओं की समस्याओं को दूर करने और तनाव कम करने में सहायक होते हैं।

खाटू प्रणाम के अधिक विकसित स्तरों का अभ्यास शरीर के ऊर्जा केन्द्रों (चक्रों) पर एकाग्रचित्तता के साथ श्वास के समन्वय के साथ किया जाता है, जैसा कि स्तर ७ में वर्णित है।

पूर्ण खाटू प्रणाम निरन्तर बलवर्धक करने वाला है और यह शरीर मन और आत्मा में संतुलन रखता है। अत: प्रथम स्तर से आपके दैनिक अभ्यास कार्यक्रम में इसको जोडऩा लाभदायक है।

दोहराना :
2 से 4 बार।

अभ्यास :
वज्रासन में बैठें। सिर व शरीर का उपरी हिस्सा एक सीध में रहेगा। हाथ जाँघों पर रहेंगे।

  1. दोनों हाथों को सिर से ऊपर ले जाएं। हथेलियों को इकट्ठा रखें और हाथों की ओर देखें।

  2. पीठ को सीधा रखते हुए हथेलियों को सामने लाएं और कूल्हों से आगे झुकें, तब तक जब तक कि बाजू और सिर का अग्र भाग फर्श को न छू ले।

  3. शरीर को आगे लाएं जब तक कि कंधे हाथों के बीच न हो जाएं। पंजे सिमटे होते हैं और कूल्हे फर्श से उपर उठे हुए होते हैं।

  4. कूल्हों को नीचे फर्श पर लाएं और शरीर के ऊपरी भाग को हाथों की सहायता से ऊपर उठाएं, केवल उस सीमा तक जबकि कूल्हे फर्श के साथ लगे रहें, ऊपर देखो, यह निश्चित रहे कि रीढ़ सामान्य रूप से मेहराब बन गई है।

  5. पैरों को सीधा रखते हुए नितम्बों को ऊपर उठाएं। शरीर का ऊपरी भाग और बाजू एक सीध में हो। पैरों के तलवे फर्श पर सपाट होने चाहिये। सिर, सीधी बाजुओं के बीच में ढीला रहेगा।

  6. हाथों के बीच में दायें पंजे को आगे लायें और बायें घुटने को फर्श पर टिकाएं। हथेलियाँ या अँगुलियाँ फर्श को छूएं। सिर को ऊपर उठाएं और सामने की ओर देखें।

  7. हाथों को सिर से ऊपर ले जायें और हथेलियों को इकट्ठा कर लें और हाथों की ओर देखें। कूल्हों को थोड़ा-सा आहिस्ता से आगे बढ़ाएं और शरीर को ऊपर की ओर खींचे।

  8. स्थिति क्रमांक - 6 पर लौट आएं।

  9. बायें पैर के पंजे को दायें के पास रखें, और घुटनों को सीधा करें, शरीर के ऊपरी हिस्से को ढीला छोड़ दें।

  10. शरीर का ऊपरी हिस्सा और बाजुओं को एक सीध में रखते हुए कूल्हों के ऊपर से उठाएं। दोनों हथेलियों को एक साथ लाएं और हाथों को देखें। ध्यान रहे कि पीठ के निचले हिस्से को ज्यादा न खींचें।

  • ये सभी आसन उल्टे क्रम में भी करें।

  1. जैसी स्थिति - ९ में दी गयी है वैसे शरीर के ऊपरी भाग को फिर आगे झुकायें और ऐसे ही रहने दें।

  2. दाएं पैर को पीछे ले जायें एवं दाएं घुटने को फर्श पर रखें, जैसा स्थिति-८ में दिया है।

  3. हाथों को ऊपर उठाएं जैसा स्थिति-७ में दिया है।

  4. बाजुओं को नीचे लाएं और पैरों के पास हाथों को फर्श पर रखें जैसा स्थिति -६ या १२ में है।

  5. बाएं पैर को दाएं पैर के बराबर लाएं और नितम्बों को ऊपर उठाएं, जैसा स्थिति-५ में है।

  6. कूल्हों को नीचे करें और शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर की ओर हाथों की सहायता से उठाएं जैसा स्थिति-४ में दिया है।

  7. ठुड्डी और छाती को फर्श पर लगाएं जिससे कूल्हे कुछ ऊपर हो जाएं जैसा स्थिति-३ में है।

  8. ऊपरी भाग को वापस लायें और स्थिति-२ के अनुसार हो जाएं।

  9. ऊपरी भाग और हाथों को एक साथ ऊपर उठाएं जैसा स्थिति-१ में है।

  10. बाजुओं को नीचे ले आएं और प्रारम्भिक स्थिति में लौट आएं।

  • दूसरी बारी में, स्थिति-6 में हाथों के बीच बाएं पैर को आगे लाएं और फिर स्थिति-१२ में बाएं पैर को आगे लाएं। तीसरी बारी में दाएं पैर को आगे लाएं, आदि।

लाभ :
प्रत्येक स्थिति का लाभ और प्रभाव का पूर्ण विवरण स्तर ७ में दिया गया है।

सावधानी :
इस क्रम को उच्च रक्तचाप वाले या फिर जिसको चक्कर आने की सम्भावना रहती है, नहीं करना चाहिये।