प्रारंभिक स्थिति :
आराम से सीधे बैठने की अवस्था।
ध्यान दें :
श्वास की प्रक्रिया पर।
दोहराव :
हर नथुने (नासाछिद्र) के साथ बीस बार दोहरायें।
नाड़ी शोधन प्रानायाम के कुल चार स्तर हैं। इनमें से प्रत्येक स्तर का अभ्यास तीन महीने करना चाहिये। अत: स्तर-1 अभ्यासों के सभी वर्गों में नाड़ी शोधन की एक ही तकनीक का अभ्यास किया जाता है। तकनीक के अगले स्तरों का स्पष्टीकरण, व्याख्या स्तर-2 से स्तर-4 के अभ्यासों के साथ किया गया है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ सर्वाधिक सिद्धासन में दिखते हैं। बैठने की किसी भी ऐसी अवस्था को चुनना संभव है जहाँ तनावरहित और गतिहीन होकर अधिक समय तक बैठना सुविधाजनक हो।
अभ्यास :
बिल्कुल तनाव रहित बैठें और कुछ समय तक सामान्य श्वास पर चित्त एकाग्र करें। > फिर दायां हाथ उठाएं, भोहं के केन्द्र में अनामिका और मध्यमा अँगुली को रखें (प्राणायाम मुद्रा) और दायें नथुने को अँगूठे से बंद रखें। > बायें नथुने से बीस बार श्वास लें। श्वास सामान्य से कुछ गहरा और पेट की ओर जाता हो। > दायें नथुने को फिर खोले और बायें नथुने को अनामिका से बंद करें। > दायें नथुने से बीस बार श्वास लें। श्वास सामान्य से थोड़ा गहरा और पेट की ओर जाता हो। > हाथ को घुटनों पर ले आएं और श्वास के सामान्य प्रभाव का निरीक्षण करें।
लाभ :
नाड़ी शोधन प्राणयाम रक्त और श्वासतंत्र को शुद्ध करता है। गहरा श्वास रक्त को ऑक्सीजन (प्राणवायु) से भर देता है। यह प्राणायाम श्वास प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है और स्नायुतंत्र को संतुलित रखता है। यह चिन्ताओं और सिर दर्द को दूर करने में सहायता करता है।