प्रारंभिक स्थिति :
पीठ के बल लेट जायें।
ध्यान दें :
रीढ़ के निकटवर्ती भाग मोडऩे पर।
श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वित।
दोहराना :
प्रत्येक भिन्न प्रकार को प्रत्येक पार्श्व (दायें-बायें) 3 बार करना।
अभ्यास :
पीठ के बल आराम से लेट जायें।
भिन्न-भिन्न प्रकार (क)
पूरक करते हुए दायें बाजू को सीधे सिर के ऊपर से उठायें और इसे सिर के पास फर्श पर रख दें। इसी समय दायें घुटने को भी शरीर की तरफ ऊपर को मोड़ें। > रेचक करते हुए बायें हाथ से दायें कंधे को यथा संभव बायें कंधे की ओर ले जायें, सिर को दायीं ओर मोड़ते हुए। > रेचक करते हुए वापस केन्द्र में आ जायें। इस अभ्यास को 3 बार करें और फिर प्रारम्भिक स्थिति में लौट आयें। इस अभ्यास को दूसरे पार्श्व में भी करें।
लाभ :
रीढ़ (पीठ का निचला हिस्सा) और कूल्हों को फैलाता और आराम देता है। पीठ की समस्याओं और त्रिकास्थि दर्द को कम करने में सहायता करता है।
भिन्न-भिन्न प्रकार (ख) (बिना दृष्टांत)
बाजुओं को कंधे की ऊंचाई तक बाहर की ओर फैलायें । > पूरक करते हुए दायें घुटने को मोड़ें और पैर को बाईं जंघा के बाहर की तरफ रखें। घुटने को बायें हाथ से पकड़े रहें। यदि नहीं पकड़े रह सकें तो टांग को थोड़ा सा ऊपर उठा दें। > रेचक करते हुए दायें घुटने को बायीं ओर फर्श की तरफ फैलायें और इसी समय सिर को दायीं ओर मोड़ें। > पूरक करते हुए केन्द्र में वापस लौट आयें। यह अभ्यास 3 बार करें और फिर प्रारम्भिक स्थिति में लौट आये। टांगों को बदल लें और यह अभ्यास दूसरी ओर भी करें।
लाभ :
यह पीठ की समस्याओं त्रिकास्थि जोड़ों में दर्द को दूर करने में सहायता करता है। यह रीढ़ की हड्डी के साथ वाली मांसपेशियों को आराम देता है और कूल्हों की क्रियाशीलता बढ़ाता है।
सावधानी :
यदि पीठ के साथ कोई कठिन समस्या हो तो यह व्यायाम नहीं करना चाहिए।
आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
रीढ़ की हड्डी की मांसपेशियों को आराम देने व कूल्हे के दर्द की समस्या को रोकने हेतु आसन और व्यायाम
त्रिकास्थि-नीलक जोड़ों को आराम हेतु आसन और व्यायाम