"आपके अपने हृदय के सिवाय कोई स्वर्ग और नर्क नहीं है। आपके अपने विचार ही स्वर्गिक परमानन्द और नरकीय यातनायें हैं।"
पूर्व योग व्यायामों ने रीढ़ के लचीलेपन को बढ़ाया है, शरीर की कायिक स्थिति को सुधारा है, और तनावहीनता के महत्त्व के प्रति जागरूकता को उन्नत किया है। इस बात पर बल दिया गया है कि हर व्यायाम का अभ्यास आहिस्ता-आहिस्ता किया जाये, श्वास के साथ शारीरिक क्रिया का समन्वय होता रहे। हर स्थिति में कुछ ठहरा जाये और पूरी एकाग्रता, ध्यान हमेशा बना रहे।
योग के पथ पर ज्यों-ज्यों अभ्यास जारी रहता है और प्रगति शुरू होती है तब यह और भी अधिक जरूरी हो जाता है कि सभी व्यायामों की निश्चित गति, प्रक्रिया पर ध्यान दिया जाये, और प्रत्येक व्यायाम के अभ्यास में पूरी एकाग्रता बनाई रखी जाये। योग अभ्यास अच्छा स्वास्थ्य लाभ देंगें और शरीर के भीतर उन सभी सुप्त शक्तियों को जगायेंगे जो जीवन में अति महत्वपूर्ण हैं।
भवगद् गीता (6/15) में कहा गया है, जो व्यक्ति योग के माध्यम से शरीर को नियन्त्रण में रखता है, और जिसने भावनाओं, इन्द्रियों और मन को वश में करना सीख लिया है और जो इच्छा और संभ्रम की बेडिय़ों को छोड़ देता है वह शान्ति और परमानन्द को प्राप्त होता है।
योग द्वारा इन सभी को प्राप्त किया जा सकता है यदि विश्वास, श्रद्धा और निष्ठा के साथ इन तकनीकों का विधिवत् और नियमित अभ्यास किया जाये।
ॐ विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आसुव ॥
ॐ विश्वानि देव
सवितुर्दुरितानि परासुव।
यद् भद्रं तन्न आसुव॥
ॐ, सर्व विद्यमान ईश्वर हमारी गलतियों और बुरे स्वभावों से छुटकारा दिलाने में हमारी सहायता करें।
सद् गुण विकसित करने में हमारी सहायता करें जो हमारे लिए सुख और समृद्धि लायेंगे।