प्रारंभिक स्थिति :
ध्यान मुद्रा।
ध्यान दें :
श्वास प्रक्रिया पर।
दोहराएं :
2-4 चक्र।
अभ्यास :
सामान्य श्वास के साथ, एक मिनट के लिए पूरे शरीर पर ध्यान दें। प्राणायाम मुद्रा करें और बायां नथुना खुला रखकर शुरू करें। > तेजी से 20 बार पूरक और रेचक गहनतापूर्वक पेट तक करें। > 20वीं बार के बाद गहन पूरक और रेचक एक ही नथुने से करें। > इसी व्यायाम को दाहिने नथुने से दोहरायें। > हाथ को घुटने पर वापस ले आयें और व्यायाम को दोनों नथुनों से जारी रखें। > 20वीं बार करने के बाद गहरा पूरक करें और जालंधर बन्ध करें।
अगला चक्र दायां नथुना पहले खोलकर शुरू करें, भस्त्रिका के अगले चक्र प्रारम्भ करते समय बायें और दायें नथुनों से क्रमानुसार, एक-एक कर शुरू करें।
सावधानी :
इस तकनीक का अभ्यास गंभीर अस्थमा, हृदयरोग या ज्वर होने पर न करें। श्वास को धारण करने में अति न करें। श्वास को मात्र उतनी देर तक रोकें जितना आसानी से संभव हो। यदि ग्रीवा ग्रन्थि के साथ कोई समस्या हो तो अभ्यास करने से पूर्व चिकित्सक से परामर्श कर लें।