यह पुस्तक समझने योग्य एक विस्तृत रचना है। सम्पूर्ण जीवन की समर्पित साधना से उत्पन्न तथा तीस वर्षों की अवधि में अर्जित ज्ञान एवं व्यापक अनुभवों का एक पच्चीकारी के समान जुड़ा उज्ज्वल, दूरगामी प्रभावकारी ग्रन्थ है। ग्रन्थ के लेखक हैं परमहंस स्वामी महेश्वरानंद (स्वामी जी)। इस पुस्तक का अधिगम पुण्यप्रद है और इसीलिए ''प्रणाली शब्द इसके शीर्षक में सम्मिलित किया है। इस शब्द का उपयोग तब किया गया है जब लेखक को सुनिश्चित है कि पाठकों के सम्मुख महत्त्वपूर्ण संसाधनों की एक पूर्ण पच्चीकारी प्रस्तुत की गई है।
उनकी अनेक पुस्तकों में से एक में स्वामीजी ने इस रूप में अपने व्यक्तिगत व्रत परिभाषित किया गया है:''मेरे जीवन का एक मात्र उद्देश्य, व्यक्तियों को यह सिखाना है कि वे स्वयं को स्वीकार करें: ''उनको यह जानने, खोजने में सहायता करना है कि वे क्यों जन्मे और उनके जीवन का उद्देश्य क्या है: अन्य लोगों का सम्मान करना, उनको यह करने में सहायता करना, अन्य लोगों की उदासी या दुख-दर्द को समझना और महसूस करना।"
यह किसी भी आध्यात्मिक शिक्षक के लिए, एक विशाल और कभी कभी एक महान कार्य होता है, क्योंकि एक शिक्षक के शब्दों में और उसके छात्रों के कार्यों में बार-बार आए अंतर कुछ व्यक्तियों द्वारा भरे या मिटाये जाते हैं। महान् शब्दों को लिखा और उनकी ध्वनि अनेक प्रकार से गुंजाई जा सकती है किंतु इन शब्दों के साथ सामंजस्य करने, उनको सक्रिय, सार्थक रूप से अभ्यास में लाने के लिए विशाल शक्ति और अनुशासन की आवश्यकता होती है। स्वामी जी के विश्व भर में फैले कई हजारों छात्रों में से एक छात्र ने यह लिखा था : ''प्रेम, विश्वास और प्रयास, वे तीन गुण हैं जो विद्यार्थी को सफलता दिलाते हैं। एक शिक्षक की पहचान, परीक्षा उसके अपने कार्यों से ही नहीं होती बल्कि उसके छात्रों के कार्यों से भी होती है। ''छात्रों के कार्यों के उदाहरण के रूप में निम्नलिखित दृष्टांत कहा जाता है। ''एक तेज हवा नाव के साथ खिलवाड़ करती है, और बहुत सारी नावें हवा के साथ खेलती रहती हैं : उनको जो अलग करता है या उनको अलग-अलग समझता है, वह अज्ञान का सागर है। स्वामी जी के प्रति छात्रों का यह प्रेम और विश्वास ही है, तथा उनकी विभिन्न निजी उपलब्धियाँ हैं जिनसे उन छात्रों को उनके जीवन उद्देश्य से सहमति होती है और यह बात उस समय ध्यान में रखनी चाहिए जब ''दैनिक जीवन में योग प्रणाली की सफलता पर विचार किया जा रहा हो।
इस पुस्तक पर ध्यान देते समय निम्नलिखित विशेष बातें दृष्टव्य हैं :
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यह पुस्तक, इसे पाठ्य पुस्तक कहा जाये, विशिष्ट रूप से शैक्षणिक और उपदेशात्मक भाव प्रकट करती है और पश्चिमी पाठक के आध्यात्मिक आयामों की ओर अभिविन्यास, अधिगम का उद्देश्य स्पष्ट करती है।
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एक प्रेक्षा-रसिक पाठक सारे पाठ में लेखक के मानवीय सिद्धान्तों का जैसे समस्त जीवित प्राणियों के प्रति प्रेम और सहायता-भाव; जीवन के प्रति सम्मान;-शांति, जिसके लिए हम सबको यत्न करना चाहिए; प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण; जनता, देश संस्कृति और धर्म के प्रति सहनशीलता; और एक सकारात्मक मन और जीवन के मार्ग के महत्व का दर्शन कर सकता है।
लेखक का यह पूर्ण विश्वास है (और हम उनके साथ सहमति से भी आगे जा सकते हैं) कि पुस्तक में उन्होंने जिस प्रणाली को प्रस्तुत किया है उसका उपयोग अपने जीवन में आने वाली अधिकांश परिस्थितियों में प्रयुक्त कर सकते हैं - चाहे उनकी उम्र, लिंग, व्यवसाय, वैवाहिक स्थिति, स्वास्थ्य, संस्कृति या धर्म कुछ भी हो! इस ग्रंथ में स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित विशेष अनुदेश भी सम्मिलित किये गये हैं।
जैसा कि स्लोवेनिया के Ljubljana में स्थित विश्वविद्यालय में खेलकूद की संकाय में डीन के रूप में मेरे साथी और मैं क्रमिक रूप से खेलकूद की नई प्रचलित बातों को और संभव दिशाओं और आगामी दशकों के कार्यक्रमों के नए-नए रूपों की बातों का विधिवत् अध्ययन करते हैं, हम प्रचलित अध्ययनों में स्लोवेनिया की प्रौढ़ जनसंख्या से संबंधित शारीरिक व्यायाम के नमूनों के आंकड़े संग्रह कर रहे हैं। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि स्लोवेनिया के 60,000 नागरिकों से अधिक (निजी रूप से या किसी संस्था में) योग प्रणाली में भाग लेते हैं। यह प्रदर्शित करता है कि योग में रुचि बढ़ रही है और साधारण रूप से यह रुचि खेलकूदों में भी बढ़ रही है जहाँ मुख्य उद्देश्य स्पर्धा में अधिक अंक प्राप्त करने का है। इसी प्रकार से अन्य देशों में भी, विशेषरूप से यूरोप की जनसंख्या का 1%-1.5% भाग योग का अभ्यास करता है। खेलकूद द्वारा जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए अधिकाधिक व्यक्तियों का एक चुना हुआ कार्यक्रम बन रहा है क्योंकि अब यह बात समझ में आने लगी है कि खेलकूद द्वारा मानव जीवन को समृद्ध करना है। दैनिक जीवन में योग शारीरिक और आध्यात्मिक आयामों को एकीकृत करता है, सांस्कृतिक क्षितिज खोलता है, और वास्तविक मानव संपे्रषण हेतु योग्यताओं और अवसरों को विकसित करता है।
किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसको प्राप्त पदकों, पुरस्कारों और धन्यवाद के पत्रों की संख्या से संभवत: किया जा सकता है! इस पुस्तक के लेखक को निश्चित रूप से अनेकों खास उच्च पुरस्कार भारत में और बहुत सारे अन्य देशों से भी प्राप्त हुए हैं। पुरस्कार सामान्य रूप से किसी व्यक्ति के मानवीय आयामों को दर्शाने की बजाय उसके व्यक्तित्व के महत्व को बढ़ा देते हैं तथापि लेखक को विभिन्न देशों और उनके राजनीतिज्ञों द्वारा दिये गए पदकों और प्रशस्तियों में से यहां मात्र एक का उल्लेख करना उपयुक्त है क्योंकि उसमें लेखक के जीवन का सराहनीय गुण सन्निहित है। चेक राष्ट्रपति और प्रसिद्ध लेखक Vaclav Havel ने स्वामी जी के विगत तीस वर्षों में उच्च आध्यात्मिक मूल्यों एवं नि:स्वार्थ जीवन को दृष्टि में रखकर उनके प्रति आभार प्रकट करते हुए एक निजी पत्र लिखा था।
मेरे व्यक्तिगत अनुभवों से, कसरत करने वालों के साथ क्षेत्र में कार्य करते हुए, मैं इस तथ्य से वाकिफ हुआ कि अधिकाधिक व्यावसायिक और नियमित व्यायाम करने वाले व्यक्तियों ने योग को अपने अभ्यास के एक आवश्यक भाग के रूप में सम्मिलित कर लिया है, और इसी कारण ही मैंने यह निश्चय किया है कि मैं अपनी क्षमताओं के अनुसार इस पुस्तक का मूल्यांकन करूं।
Ljubljana, May 2000
Univ. Prof. Kresimir Petrovic PhD., Dean of the Faculty of Sport, University of Ljubljana, Slovenia