"ईश्वर से प्राप्त महानतम सुख और परम उपहार मानव जीवन है। मूर्ख वह है जो इसकी अनुभूति नहीं करता और लापरवाही से इस मूल्यवान उपहार को गंवा देता है। वह उस व्यक्ति के समान व्यवहार करता है जो एक हीरे को ऐसे फेंक दें मानों यह कोई अनुपयोगी काँच का टुकड़ा हो। अपने जीवन को इस प्रकार व्यर्थ न जाने दें, जैसे आपकी अँगुलियों में से रेत फिसल रही हो।"
एक बार फिर योग अभ्यास का एक नया स्तर आपके सम्मुख प्रस्तुत है जो आपके विकास के लिए भी नया स्तर है।
दैनिक अभ्यास में आपने इन आसनों, प्राणायाम और ध्यान द्वारा शरीर, मन और आत्मा पर पडऩे वाले प्रभावों को समझा और अनुभव कर लिया है। अगला कदम योग की दार्शनिकता और आध्यात्मिक पहलुओं को अधिक गहनता से विचार करने का है। "मैं कहाँ से आया हूँ?" "जीवन का अर्थ और प्रयोजन क्या है?" "मुझे इस जीवन में कौन-सा कत्र्तव्य पालन करना है?" और अन्त में, "मैं इस जीवन के पश्चात् कहाँ जाऊंगा?"
"दैनिक जीवन में योग" के अभ्यास से इन पांच महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किये जा सकते हैं। अन्तत: हम स्वयं को भाग्य के चक्र से मुक्त कर सकते हैं और योग के अंतिम और सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं—कर्म, मृत्यु और पुनर्जन्म से मुक्ति।
इस लक्ष्य के पथ पर आप अनेक स्वास्थ्य समस्याओं, मानसिक चिन्ताओं और भय से मुक्त हो जाते हो। इनसे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप उन आन्तरिक विशेषताओं से स्वयं को स्वतन्त्र कर सकते हो जो आपको विचलित करती हैं। जैसे क्रोध, अहं, घृणा, मोह, ईर्ष्या और व्यसन या आसक्ति।
सदैव सचेत रहें कि योग एक पूर्णरूपेण स्वैच्छिक पथ है- सूर्य की किरणों के समान उज्ज्वल व स्पष्ट और आकाश में एक पक्षी के समान स्वतन्त्र। किसी को भी दबाव में होना अनुभव नहीं करना चाहिए। यह सुनिश्चित करने का पूरी तरह से आपके स्वयं का निर्णय है कि आपको कौन से कदम उठाने हैं और कब।
मन की चंचल और परिवर्तनशील वृत्ति से व्यक्ति प्राय: योग के पथ से संबंध तोडऩे के लिए प्रेरित हो जाता है और फिर कुछ नया खोजने में लग जाता है। इसीलिए आपको पहले सावधानीपूर्वक महान जागरूकता का विकास और अपने विचारों का विश्लेषण करना चाहिए। मात्र उत्सुकतावश स्वयं को परिवर्तन से प्रलोभित न होने दें। योग में जो सफलता आप पाते हैं, उसको एक कोमल पौधे को दी जाने वाली देखभाल, सावधानी से समझा जा सकता है—यह तभी बढ़ेगा और फल देगा जब उसे आप की कोमल और प्रिय, मधुर देखभाल प्राप्त होगी। यदि आप एक छोटे से बीज को बारम्बार उल्टेंगे और पलटेंगे तो इसे कभी भी जड़ जमाने और प्रस्फुटित होने का अवसर नहीं मिलेगा। इसी प्रकार आध्यात्मिकता के फूल का विकास मात्र धैर्य, प्रेम और लगन से ही हो सकता है।
निर्गुणो निष्क्रियो नित्यो । निर्विकल्पो निरञ्जनः ।
निर्विकारो निराकारो । नित्य मुक्तोऽस्मि निर्मलः ॥
मैं निर्गुण, निष्क्रिय, निर्विकल्प,
निर्दोष, निर्विकार, अपरिवर्तित,
निराकार, नित्यमुक्त और नित्य निर्मल हूँ।