प्रारंभिक स्थिति :
सर्वांगासन
ध्यान दें :
विशुद्घि चक्र पर।
श्वास :
सामान्य।
दोहराना :
1 बार।
अभ्यास :
सर्वांगासन में आयें और कुछ देर तक इस स्थिति में रहें। विशुद्घि चक्र में श्वास का निरीक्षण करें। > घुटनों को मोड़ें और टांग के निचले भागों को आराम से लटकने दें। जांघें और पीठ सीधी खड़ी रेखा में हैं। इस स्थिति में कुछ देर रहें और फिर सर्वांगासन में वापस आ जायें। > धीरे-धीरे टांगों और पीठ को नीचे लायें और पीठ पर लेट कर विश्राम करें। > इसके विपरीत अभ्यास के लिए मत्स्यासन करें।
लाभ :
यह अवटू ग्रन्थि, हृदय और पूरे परिचालन को प्रोत्साहित करता है। विशुद्घि चक्र को संतुलित करता है। रीढ़ और नितम्बों की मांसपेशियों को मजबूत करता है। गर्दन और जांघों के सामने की मांसपेशियों को खींचता है। टांगों से हृदय की ओर रक्त की वापसी को बढ़ाता है, जो शिरीय वापसी (Venus Return)और बवासीर की समस्या में अत्यन्त लाभदायक होता है। यह स्थिति भ्रंष गुर्दे (Prolapsed Pelvic Organs)में भी सहायक होती है और जन्म देने के पश्चात् कुछ सप्ताह के बाद इसकी सिफारिश की जाती है।
सावधानी :
अति सक्रिय टेंटुआ, उच्च रक्तचाप या ग्रीवा रीढ़ में दर्द हो तो यह आसन नहीं करें। 14 वर्ष की आयु से छोटे बच्चों को किसी भी समय अवधि के लिए इस स्थिति में नहीं रुकना चाहिये।
आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
थायरॉयड ग्रंथि को सक्रिय करने के लिये आसन और व्यायाम
प्रसव पश्चात् अनुशंसा हेतु आसन और व्यायाम
कूल्हे की मांसपेशियों को खींचना आसन और व्यायाम
शिराओं के पुनर्भरण हेतु आसन और व्यायाम