इस विधि को गज-कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। गज हाथी को कहते हैं। जब हाथी को अपने पेट में उबकायी आती है, तब वह अपनी (ग्रसिका) ग्रीवा में सूंड अंदर तक डाल देता है और पेट के अंदर की वस्तुओं को बाहर निकाल फैंकता है। इस प्रकार यह विधि हमें प्रकृति से ही प्राप्त हुई है। यह विधि पेट में अति अम्लता होने या जब कुछ अपाच्य या बुरा खा लिया हो, तब मिचली से छुटकारा दिलाती है। यह विधि खाद्य प्रति-ऊर्जा (एलर्जी) और दमा भी दूर कर पाती है।

जल धौति या कुंजल क्रिया

विधि :
दो लीटर गरम पानी (400 सेन्टीग्रेड) में एक चाय-चम्मच नमक मिलाएं। सीधे खड़े हो जाएं और तेजी से एक के बाद दूसरे गिलास से पूरा पानी पी जाएं। थोड़ा-सा आगे झुकें। बायें हाथ से पेट का निचला भाग दबायें और अनामिका व मध्यमा (दायें हाथ की) अंगुलियों को गले में कुछ अंदर तक डालें। साथ ही जीभ को भी बाहर निकालें जिससे उलटी आ जाए। पूरा पानी आधा मिनट में फिर बाहर आ जाता है।

यह विधि हर सप्ताह या सप्ताह में दो बार दोहराई जा सकती है और यह प्रात:काल खाली पेट करना सर्वोत्तम है।

लाभ :
उच्च अम्लता, प्रति-ऊर्जा और दमा पर इसका लाभकारी प्रभाव होता है। यह (श्वास की) दुर्गन्ध भी नष्ट करती है।

सावधानी :
उच्च रक्त-चाप या काला पानी (Glucoma) होने पर इसका अभ्यास नहीं करें।

Dhauti

सूत्र धौति

विधि :
पेट के शुद्धिकरण की इस विधि में सूत की एक तीन मीटर लंबी,10 सेमी चौड़ी पट्टी की आवश्यकता होती है। इस तकनीक का सर्वप्रथम अभ्यास "दैनिक जीवन में योग" के शिक्षक के मार्ग दर्शन में ही करना चाहिये।

लाभ :
धौति की तरह ही यह विधि भी पेट को शुद्ध करती है और अति अम्लता को दूर करने में सहायक होती है। यह ऊपरी श्वसन मार्ग को शुद्ध करती है और इस प्रकार दमा, धूल और पराग की प्रति-ऊर्जा (एलर्जी) को दूर करती है।

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