श्वास के बारे में
जीवित रहने और शरीर को स्वस्थ रखने के लिये हमें न केवल भोजन और जल अपितु श्वास लेने के लिये वायु भी चाहिये। वायु जिसमें हम श्वास लेते हैं वह खाने और पीने से भी अधिक महत्वपूर्ण है। भोजन बिना हम कई सप्ताह जिन्दा रह सकते हैं। पानी बिना हम कुछ दिन जीवित रह सकते हैं परन्तु वायु के बिना हम कुछ क्षण ही रह सकेंगे। हमारा जीवन श्वास के साथ ही चलता और मर जाता है।
एक श्वास में तीन चरण स्पष्ट होते हैं। [1]:
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श्वास अन्दर लेना।
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श्वास बाहर निकालना।
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श्वास की अवधि में ठहरना।
एक चरण दूसरे में पहुँचाता है। श्वास बाहर करने में लगभग दुगुना समय लगना चाहिये। श्वास अन्दर लेने की तुलना में श्वास बाहर करने के बाद ही ठहराव की स्थिति सहज रूप में आती है जबकि पुन: श्वास लेने की जरूरत मालूम न पड़े। अंदर श्वास लेना श्वास क्रिया का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसी के साथ श्वास-तंत्र की मांसपेशियों का सिकुडऩा दृष्टिगोचर हो जाता है। यह सक्रिय अंश है। श्वास बाहर निकालना श्वास का निष्क्रिय अंश है, यह तनाव-हीनता का चरण है।
शांत, नियमित और गहरा श्वास लेना हमारे स्वास्थ्य के लिये निर्णायक है जिससे हमारे शरीर और मन पर दूसरा समाधान-कारक और शांत करने वाला प्रभाव पड़ता है। दूसरी ओर, अधिक तेज और उथले श्वास का हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव होता है क्योंकि यह हमारी घबराहट, दबाव, तनाव और दु:ख को बढ़ा सकता है।
श्वास प्रक्रिया में बहुधा एक गलती यह होती है कि जब हम छाती को फुलाते हैं तभी पेट को भीतर की ओर खींच लेते हैं, जबकि हमें करना यह चाहिए कि पेट को बाहर की ओर ढीला छोड़ दें। पेट को अंदर ले जाने से गहरी श्वास को काफी नुकसान हो जाता है। प्राय: आधुनिक वेशभूषा और कसी हुई वस्त्र-सज्जा स्वाभाविक श्वास-क्रिया को दूषित करती है।
अत: योग के सभी व्यायाम, जिनमें श्वास के व्यायाम भी शामिल हैं, धीरे-धीरे और बिना अनावश्यक तनाव के, बिना अभिलाषा या प्रतियोगिता के ही करने चाहिये। श्वास नि:शब्द और नाक** से ही लेना चाहिए। थोड़े समय में ही और अभ्यास से, व्यक्ति धीरे-धीरे धीमा और लम्बा श्वास लेने का यत्न करने लगता है। केवल सही श्वास-प्रक्रिया के माध्यम से ही योग व्यायामों के पूर्ण प्रभाव प्राप्त व दृष्टिगोचर किए जा सकेंगे।
सभी व्यायामों के साथ-साथ यह भी अति महत्वपूर्ण है कि इनका अभ्यास शारीरिक व मानसिक स्वस्थता की स्थिति में किया जाय। पूरी तरह तनाव-रहित स्थिति की जरूरत इसलिए है कि इसी हालत में तो निर्धारित आसन के मध्य होने वाली मांसपेशियों को खींचा-छोड़ा जा सकता है। मानसिक रूप से तनावमुक्त अवस्था आवश्यक है जिससे तनावरहित और श्वास क्रिया पर पूरी एकाग्रता से आसन किये जा सकें। सचेत रहते हुए श्वास बाहर छोडऩे से, व्यक्ति मांसपेशियों को तनाव रहित करने में पर्याप्त मदद कर सकता है क्योंकि मांसपेशियों का तनावमुक्त होना श्वास बहिर्गमन से ही संबंधित है।
योग से स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न श्वास शैलियों (तकनीकों) से शरीर और मस्तिष्क किस प्रकार प्रभावित किया जा सकत है। दुर्भाग्य से, हमारे श्वास लेने-छोडऩे का ढंग प्राकृतिक और सही श्वास प्रणाली से बहुत दूर हो चुका है। स्वस्थ श्वास प्रक्रिया को पुन: स्थापित करने हेतु "पूर्ण योग श्वास" के अभ्यास की मूल आवश्यकता है।
पूर्ण योग श्वास
"पूर्ण योग श्वास" को सीखने में श्वास लेने के तीन प्रकार विशेष उल्लेखनीय हैं:
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पेट या मध्य-पट संबंधी श्वास-प्रक्रिया
श्वास भीतर लेने के साथ ही मध्य-पेट नीचे की ओर गतिशील होने लगता है जिससे पेट के भाग (हिस्से) पर दबाव पड़ता है और पेट की दीवार, अंदरूनी भाग बाहर की ओर फैलता है। श्वास बाहर छोडऩे पर पेट का अवयव (भाग) फिर से आगे की ओर गतिशील होता है तथा पेट की दीवार समतल हो जाती है। श्वास भीतर लेने की प्रक्रिया के विपरीत, श्वास बाहर छोडऩे-निकलने की प्रक्रिया निष्क्रिय है।
पेट की श्वास श्वास-प्रक्रिया का आधार बनती है क्योंकि इसी के कारण फेफड़े की क्षमता, धारिता का पूरा-पूरा उपयोग होता है। यह सहज, प्राकृतिक ढंग से श्वास को धीमा कर देती है और उससे तनाव-मुक्ति होती है।
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फेफड़े संबंधी श्वास-प्रक्रिया
श्वास भीतर लेने के साथ ही पसलियाँ ऊँची हो जाती हैं जिसके कारण छाती चौड़ी हो जाती है। श्वास बाहर छोडऩे पर पसलियाँ अपनी पूर्व-स्थिति में आ जाती हैं। वायु फेफड़ों के मध्य भागों में आ जाती है। फेफड़ों में उतना भराव नहीं होता जितना पेट की श्वास-प्रक्रिया में होता है, और श्वास अधिक तेज त्वरित व उथली, ऊपरी हो जाती है।
यह श्वास-प्रक्रिया कठिन स्थितियों में, घबराहट या तनाव के कारण स्वत: चालू हो जाती है। इस अधिक तेज श्वास-प्रक्रिया के अवचेतन उपयोग से अधिक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। इस अहितकर चक्र को दूर करने के लिये, धीमा और गहरा पेट-श्वास तकनीक अधिक सहायक होता है।
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हँसली (गले की हड्डी) की श्वास-प्रक्रिया
इस प्रकार की श्वास-पद्धति में वायु फेफड़ों के शीर्ष-भाग में चलने लगती है। श्वास अंदर लेने पर सीने का ऊपरी भाग और हँसलियाँ उठ जाती हैं। श्वास बाहर छोडऩे पर वे फिर नीचे हो जाती हैं। श्वास बहुत उथली एवं तेज होती है।
इस प्रकार की श्वास अत्यन्त दबाव, परेशानी और डर, या श्वास लेने में बहुत ज्यादा मुश्किल होने की स्थिति में होती है।
स्वस्थ और सहज प्राकृतिक श्वास-प्रक्रिया में ये तीनों भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ बनती रहती हैं। हर एक अवस्था लहर से संयुक्त, जुड़ी है जो श्वास अंदर लेने (पूरक) की अवस्था में फेफड़ों के लिये नीचे से ऊपर और श्वास छोडऩे (रेचक) की अवस्था में ऊपर से नीचे की ओर जाती है। पूरक के साथ, पेट आगे की ओर फैलता है, सीना फूल जाता है। रेचक के साथ सीना और पेट अपनी पूर्व-अवस्था में आ जाते हैं। जब कोई व्यक्ति सहज रूप से फेफड़ों की पूर्ण क्षमता, धारिता का उपयोग, बिना किसी बल के, इस श्वास-तकनीक के प्रकार से करता है, तब वह व्यक्ति पूर्ण योग श्वास का अभ्यास करता है।
श्वास-प्रक्रिया के तीन प्रकारों के लिए व्यायाम
प्रारंभिक स्थिति :
पीठ के बल लेट जाएं।
ध्यान दें :
पूरे शरीर और श्वास पर।
समय-अवधि :
2-3 मिनट।
अभ्यास :
पीठ के बल लेटें, बाजू (हाथ) शरीर के ढीले हों और हथेलियाँ ऊपर की दिशा में रहें पैर सीधे रहें, या मुड़े हों तो पैरों की ऐडियाँ फर्श पर रहें। आखें बंद कर लें और शरीर को आराम करने दें।
भिन्न-भिन्न-स्थिति (क)
> हाथों को पेट पर रखें और हर पूरक व रेचक श्वास के साथ पेट का हिलना-डुलना देखें। > अब हाथों को पसलियों के पास रखें, अँगुलियाँ छाती के केन्द्र की ओर संकेत करें और देखें कि पसलियाँ क्या और कितनी दूर तक हाथों के नीचे फैलती और सिकुड़ती हैं। > अब आगे, हाथों को पसलियों के नीचे रखें और इस क्षेत्र में छाती की हल-चल (गति) देखें।
भिन्न-भिन्न-स्थिति (ख)
> शांति से, कई बार पूरक और रेचक श्वास-क्रिया करें और सामान्य से थोड़ा अधिक गहरी श्वास रखें। श्वास के साथ होने वाली हर स्पन्दन का ध्यान रखें। > इसी प्रकार श्वास जारी रखें और बाजुओं को सीधा रखते हुए उनको सिर की ओर फर्श पर चलाएं, फैलाएं। देखें कि श्वास से संबंधित स्पन्दन किस प्रकार हाथों की हर स्थिति में बदलाव के साथ बदलते हैं और श्वास की मात्रा (घनत्व) भी किस प्रकार बदल जाती है।
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बाजुओं को सीधा रखते हुए फर्श पर उनको लगभग 45° के कोण पर रखें। ठहरें और श्वास के प्रवाह को ध्यान से देखें।
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बाजुओं को फर्श के साथ-साथ 45° के कोण पर ले जायें। अब कंधों की ऊँचाई तक उस दिशा में फैलायें, थोड़ा सा रुकें, अब फिर श्वास के प्रवाह को देखें।
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बाजुओं को उतना चलायें ताकि ये फर्श पर सिर के पास आ जायें।
पूर्ण योग श्वास के लिये व्यायाम
प्रारम्भिक स्थिति :
पीठ के बल लेटें।
ध्यान दें :
पूर्ण शरीर और श्वास पर ।
दोहराना :
5-10 बार।
अभ्यास :
पीठ के बल लेटें। टाँगें एक दूसरे से दूर-दूर ढीली रखें। बाजू शरीर के पास ही आराम से पड़े होंगे जिसमें हथेलियाँ ऊपर की ओर होंगी। सारे शरीर को आराम दें। आँखें बंद कर लें।
भिन्न-भिन्न स्थिति (क)
> पूरक (श्वास लेना) करते हुए बाजू को सीधा रखें और उनको धीरे से पाश्र्व में फर्श के साथ-साथ ऊपर की ओर लायें जब तक कि वे सिर के पास न आ जायें। श्वास को बाजुओं की गति के साथ समन्वित करें, जिसमें पेट की श्वास से प्रारम्भ करते हुए पीठ की ओर जाते हुए और अंत में हँसलियों के क्षेत्र में पहुँचा जा सके। > धीरे-धीरे रेचक (श्वास छोडऩा) करते हुए बाजुओं को शरीर के पास लायें। रेचक उलटी प्रकार किया जाता है। सचेत रहते हुए हँसलियों के क्षेत्र से रेचक प्रारंभ करें, छाती-भाग में जारी रखें और अंत में पेट को आराम दें ।
यह पूरा क्रम संख्या में एक बार हुआ। यह अभ्यास 5-10 बार करें। सचेत रहते हुए श्वास-प्रक्रिया का अनुभव करते रहें ताकि श्वास यथा संभव गहन और पूर्ण हो जाए।
भिन्न-भिन्न-स्थिति (ख)
> पूरक करते हुए बाजुओं को एक-दूसरे के समानान्तर रखें और उनको छत (ऊपर) की ओर ऊँची मेहराब-रूप में उठाएं। बाजुओं को फर्श पर सिर के पास रख दें, जिसमें हथेलियाँ ऊपर की ओर (खुली) रहेंगी। > रेचक करते हुए उसी प्रकार बाजुओं को शरीर के पास वापस ले आएं। हथेलियाँ फर्श पर रहेंगी। > सचेत रहते हुए, ध्यानपूर्वक श्वास-प्रक्रिया के तीनों प्रकारों (पेट की श्वास, छाती की श्वास और हँसलियों की श्वास-प्रक्रिया) का अनुभव और पर्यवेक्षण करें।
इस अभ्यास को 5-10 बार करें। देखें कि एक बार के अभ्यास से ही यह श्वास-योग-व्यायाम श्वास का घनत्व कितना अधिक बढ़ा देता है।